Thursday, July 26, 2012

सोनिया गाँधी की पूरी असली हिस्ट्री .....जरुर देखे...........


सोनिया गाँधी की पूरी असली हिस्ट्री .....जरुर देखे...........


सोनिया माइनो गांधी. भारत की सबसे ताकतवर महिला शासक जिसके प्रत्यक्ष हाथ में सत्ता भले ही न हो लेकिन जो एक सत्ताधारी पार्टी की सर्वेसर्वा हैं. जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी लंबे अरसे से सोनिया गांधी के बारे में ऐसे आश्चर्यजनक बयान देते रहे हैं जिसपर सहसा यकीन करना मुश्किल होगा. लेकिन अब जैसे जैसे समय बीत रहा है सोनिया गांधी का सच और सुब्रमण्यम स्वामी के बयान की दूरियां घटती दिखाई दे रही हैं. सोनिया गांधी के बारे में खुद सुब्रमण्यम स्वामी का यह लेख-
तीन झूठ:
(पहला ) कांग्रेस पार्टी और खुद सोनिया गांधी अपनी पृष्ठभूमि के बारे में जो बताते हैं, वो तीन झूठों पर टिका हुआ है। पहला ये है कि उनका असली नाम अंतोनिया है न की सोनिया। ये बात इटली के राजदूत ने नई दिल्ली में 27 अप्रैल 1973 को लिखे अपने एक पत्र में जाहिर की थी। ये पत्र उन्होंने गृह मंत्रालय को लिखा था, जिसे कभी सार्वजनिक नहीं किया गया। सोनिया का असली नाम अंतोनिया ही है, जो उनके जन्म प्रमाण पत्र के अनुसार एकदम सही है।
 (दूसरा झूठ)सोनिया से जुड़ा दूसरा झूठ है उनके पिता का नाम। अपने पिता का नाम स्टेफनो मैनो बताया था। वो दूसरे विश्व युद्ध के समय रूस में युद्ध बंदी थे। स्टेफनो नाजी आर्मी के वालिंटियर सदस्य थे। बहुत ढेर सारे इतालवी फासिस्टों ने ऐसा ही किया था। सोनिया दरअसल इतालवी नहीं बल्कि रूसी नाम है। सोनिया के पिता रूसी जेलों में दो साल बिताने के बाद रूस समर्थक हो गये थे। अमेरिकी सेनाओं ने इटली में सभी फासिस्टों की संपत्ति को तहस-नहस कर दिया था। सोनिया ओरबासानो में पैदा नहीं हुईं, जैसा की उनके बायोडाटा में दावा किया गया है। इस बायोडाटा को उन्होंने संसद में सासंद बनने के समय पर पेश किया था, सही बात ये है कि उनका जन्म लुसियाना में हुआ। शायद वह इस जगह को इसलिए छिपाने की कोशिश करती हैं ताकि उनके पिता के नाजी और मुसोलिनी संपर्कों का पता नहीं चल पाये और साथ ही ये भी उनके परिवार के संपर्क इटली के भूमिगत हो चुके नाजी फासिस्टों से युद्ध समाप्त होने तक बने रहे। लुसियाना नाजी फासिस्ट नेटवर्क का मुख्यालय था, ये इटली-स्विस सीमा पर था। इस मायनेहीन झूठ का और कोई मतलब नहीं हो सकता।
(तीसरा झूठ ) सोनिया गांधी ने हाईस्कूल से आगे की पढ़ाई कभी की ही नहीं , लेकिन रायबरेली से चुनाव लड़ने के दौरान उन्होंने अपने चुनाव नामांकन पत्र में उन्होंने ये झूठा हलफनामा दायर किया कि वो अंग्रेजी में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से डिप्लोमाधारी हैं। ये हलफनामा उन्होंने 2004 के लोकसभा चुनावों के दौरान रायबरेली में रिटर्निंग ऑफिसर के सम्मुख पेश किया था। इससे पहले 1989 में लोकसभा में अपने बायोग्राफिकल में भी उन्होंने अपने हस्ताक्षर के साथ यही बात लोकसभा के सचिवालय के सम्मुख भी पेश की थी , जो की गलत दावा था। बाद में लोकसभा स्पीकर को लिखे पत्र में उन्होंने इसे मानते हुए इसे टाइपिंग की गलती बताया। सही बात ये है कि श्रीमती सोनिया गांधी ने कभी किसी कालेज में पढाई की ही नहीं। वह पढ़ाई के लिए गिवानो के कैथोलिक नन्स द्वारा संचालित स्कूल मारिया आसीलेट्रिस गईं , जो उनके कस्बे ओरबासानों से 15 किलोमीटर दूर था। उन दिनों गरीबी के चलते इटली की लड़कियां इन मिशनरीज में जाती थीं और फिर किशोरवय में ब्रिटेन ताकि वहां वो कोई छोटी-मोटी नौकरी कर सकें। मैनो उन दिनों गरीब थे। सोनिया के पिता और माता की हैसियत बेहद मामूली थी और अब वो दो बिलियन पाउंड की अथाह संपत्ति के मालिक हैं। इस तरह सोनिया ने लोकसभा और हलफनामे के जरिए गलत जानकारी देकर आपराधिक काम किया है , जिसके तहत न केवल उन पर अपराध का मुकदमा चलाया जा सकता है बल्कि वो सांसद की सदस्यता से भी वंचित की जा सकती हैं। ये सुप्रीम कोर्ट की उस फैसले की भावना का भी उल्लंघन है कि सभी उम्मीदवारों को हलफनामे के जरिए अपनी सही पढ़ाई-लिखाई से संबंधित योग्यता को पेश करना जरूरी है। इस तरह ये सोनिया गांधी के तीन झूठ हैं, जो उन्होंने छिपाने की कोशिश की। कहीं ऐसा तो नहीं कि कतिपय कारणों से भारतीयों को बेवकूफ बनाने के लिए उन्होंने ये सब किया। इन सबके पीछे उनके उद्देश्य कुछ अलग थे। अब हमें उनके बारे में और कुछ भी जानने की जरूरत है।
सोनिया का भारत में पदार्पण:
सोनिया गांधी ने इतनी इंग्लिश सीख ली थी कि वो कैम्ब्रिज टाउन के यूनिवर्सिटी रेस्टोरेंट में वैट्रेस बन गईं। वो राजीव गांधी से पहली बार तब मिलीं जब वो 1965 में रेस्टोरेंट में आये। राजीव यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट थे , लेकिन वो लंबे समय तक अपने पढ़ाई के साथ तालमेल नहीं बिठा पाये इसलिए उन्हें 1966 में लंदन भेज दिया गया , जहां उनका दाखिला इंपीरियल कालेज ऑफ इंजीनियरिंग में हुआ। सोनिया भी लंदन चली आईं। मेरी सूचना के अनुसार उन्हें लाहौर के एक व्यवसायी सलमान तासिर के आउटफिट में नौकरी मिल गई। तासीर की एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट कंपनी का मुख्यालय दुबई में था लेकिन वो अपना ज्यादा समय लंदन में बिताते थे। आईएसआई से जुडे होने के लिए उनकी ये प्रोफाइल जरूरी थी। स्वाभावित तौर पर सोनिया इस नौकरी से इतना पैसा कमा लेती थीं कि राजीव को लोन फंड कर सकें। राजीव मां इंदिरा गांधी द्वारा भारत से भेजे गये पैसों से कहीं ज्यादा पैसे खर्च देते थे। इंदिरा ने राजीव की इस आदत पर 1965 में  गुस्सा जाहिर किया था,  श्रीमती इंदिरा गांधी ने सुब्रमन्यम को ब्रेंनेडिस यूनिवर्सिटी के गेस्ट हाउस में , जहां वो ठहरी थीं , व्यक्तिगत तौर पर चाय के लिए आमंत्रित किया। पीएन लेखी द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट में पेश किये गये राजीव के छोटे भाई संजय को लिखे गये पत्र में साफ तौर पर संकेत दिया गया है कि वह वित्तीय तौर पर सोनिया के काफी कर्जदार हो चुके थे और उन्होंने संजय से अनुरोध किया था , जो उन दिनों खुद ब्रिटेन में थे और खासा पैसा उड़ा रहे थे और कर्ज में डूबे हुए थे। वो हालात भी विवादों से भरे हैं जब राजीव ने ओरबासानो के चर्च में सोनिया से शादी की थी , लेकिन ये प्राइवेट मसला है , इसका जिक्र करना ठीक नहीं होगा। इंदिरा गांधी शुरू में इस विवाह के सख्त खिलाफ थीं, उसके कुछ कारण भी थे जो उन्हें बताये जा चुके थे। वो इस शादी को हिन्दू रीतिरिवाजों से दिल्ली में पंजीकृत कराने की सहमति तब दी जब सोवियत समर्थक टी एन कौल ने इसके लिए उन्हें कंविंस किया , उन्होंने इंदिरा जी से कहा था कि ये शादी भारत-सोवियत दोस्ती के वृहद इंटरेस्ट में बेहतर कदम साबित हो सकती है। कौल ने भी तभी ऐसा किया जब सोवियत संघ ने उनसे ऐसा करने को कहा।
सोनिया के केजीबी कनेक्शन:
बताया जाता है कि सोनिया के पिता के सोवियत समर्थक होने के बाद से सोवियत संघ का संरक्षण सोनिया और उनके परिवार को मिलता रहा। जब एक प्रधानमंत्री का पुत्र लंदन में एक लड़की के साथ डेटिंग कर रहा था , केजीबी जो भारत और सोवियत रिश्तों की खासा परवाह करती थी , ने अपनी नजर इस पर लगा दी , ये स्वाभाविक भी था , तब उन्हें पता लगा कि ये तो स्टेफनो की बेटी है , जो उनका इटली का पुराना विश्वस्त सूत्र है। इस तरह केजीबी ने इस शादी को हरी झंडी दे दी। इससे पता चलता है कि केजीबी श्रीमती इंदिरा गांधी के घर में कितने अंदर तक घुसा हुआ था। राजीव और सोनिया के रिश्ते सोवियत संघ के हित में भी थे , इसलिए उन्होंने इस पर काम भी किया। राजीव की शादी के बाद मैनो परिवार को सोवियत रिश्तों से खासा फायदा भी हुआ। भारत के साथ सभी तरह सोवियत सौदों , जिसमें रक्षा सौदे भी शामिल थे , से उन्हें घूस के रूप में मोटी रकम मिलती रही। एक प्रतिष्ठित स्विस मैगजीन स्विट्जर इलेस्ट्रेटेड के अनुसार राजीव गांधी के स्विस बैंक अकाउंट में दो बिलियन पाउंड जमा थे , जो बाद में सोनिया के नाम हो गये। डॉ. येवगेनी अलबैट (पीएचडी , हार्वर्ड) जाने माने रूसी स्कॉलर और जर्नलिस्ट हैं और वो अगस्त 1981 में राष्ट्रपति येल्तिसिन द्वारा बनाये गये केजीबी कमीशन के सद्स्यों में भी थीं। उन्होंने तमाम केजीबी की गोपनीय फाइलें देखीं , जिसमें सौदों से संबंधित फाइलें भी थीं। उन्होंने अपनी किताब द स्टेट विदइन स्टेट – केजीबी इन द सोवियत यूनियन में उन्होंने इस तरह की गोपनीय बातों के रिफरेंस नंबर तक दे दिये हैं , जिसे किसी भी भारतीय सरकार द्वारा क्रेमलिन से औपचारिक अनुरोध पर देखा जा सकता है। रूसी सरकार की 1982 में अल्बैटस से मीडिया के सामने ये सब जाहिर करने पर भिङत भी हुई। उनकी बातों की सत्यता की पुष्टि रूस के आधिकारिक प्रवक्ता ने भी की। (ये हिन्दू 1982 में प्रकाशित हुई थी)। प्रवक्ता ने इन वित्तीय भुगतानों की पैरवी करते हुए कहा था कि सोवियत हितों की दृष्टि से ये जरूरी थे। इन भुगतानों में कुछ हिस्सा मैनो परिवार के पास गया , जिससे उन्होंने कांग्रेस पार्टी की चुनावों में भी फंडिंग की। 1981 में जब सोवियत संघ का विघटन हुआ तो चीजें श्रीमती सोनिया गांधी के लिए बदल गईं। उनका संरक्षक देश 16 देशों में बंट गया। अब रूस वित्तीय रूप से खोखला हो चुका था और अव्यवस्थाएं अलग थीं। इसलिए श्रीमती सोनिया गांधी ने अपनी निष्ठाएं बदल लीं और किसी और कम्युनिस्ट देश के करीब हो गईं , जो रूस का विरोधी है। रूस के मौजूदा प्रधानमंत्री और इससे पहले वहां के राष्ट्रपति रहे पुतिन एक जमाने में केजीबी के बड़े अधिकारी थे। जब डा. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे थे तो रूस ने अपने करियर डिप्लोमेट राजदूत को नई दिल्ली से वापस बुला लिया और तुरंत उसके पद पर नये राजदूत को तैनात किया , जो नई दिल्ली में 1960 के दशक में केजीबी का स्टेशन चीफ हुआ करता था। इस मामले में डॉ. अल्बैट्स का रहस्योदघाटन समझ में आता है कि नया राजदूत सोनिया के केजीबी के संपर्कों के बारे में बेहतर तरीके से जानता था। वो सोनिया से स्थानीय संपर्क का काम कर सकता था। नई सरकार सोनिया के इशारों पर ही चलती है और उनके जरिए आने वाली रूसी मांगों को अनदेखा भी नहीं कर सकती। क्या इससे ये नहीं लगता कि ये भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरनाक भी हो सकता है। वर्ष 2001 में सुब्रमन्यम    ने  दिल्ली में एक रिट याचिका दायर की , जिसमें केजीबी डाक्यूमेंट्स की फोटोकापियां भी थीं और इसमें उन्होंने सीबीआई जांच की मांग की थी लेकिन वाजपेई सरकार ने इसे खारिज कर दिया। इससे पहले सीबीआई महकमे को देखने वाली गृह राज्य मंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने मेरे 3 मार्च 2001 के पत्र पर सीबीआई जांच का आदेश भी दे दिया था लेकिन इस मामले पर सोनिया और उनकी पार्टी ने संसद की कार्रवाई रोक दी। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेई ने वसुधरा की जांच के आदेश को खारिज कर दिया। मई 2002 में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक दिशा निर्देश जारी किया कि वो रूस से मालूम करे कि सत्यता क्या है , रुसियों ने ऐसी किसी पूछताछ का कोई जवाब नहीं दिया लेकिन सवाल ये है कि किसने सीबीआई को इस मामले पर एफआईआर दर्ज करने से मना कर दिया था। वाजपेई सरकार ने , लेकिन क्यों ? इसकी भी एक कहानी है। अब सोनिया ड्राइविंग सीट पर हैं और सीबीआई की स्वायत्ता लगभग खत्म सी हो चुकी है
सोनिया और भारत के कानूनों का हनन:
सोनिया के राजीव से शादी के बाद वह और उनकी इतालवी परिवार को उनके दोस्त और स्नैम प्रोगैती के नई दिल्ली स्थित प्रतिनिधि आटोवियो क्वात्रोची से मदद मिली। देखते ही देखते मैनो परिवार इटली में गरीबी से उठकर बिलियोनायर हो गया। ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं था जिसे छोड़ा गया। 19 नवंबर 1964 को नये सांसद के तौर पर मैंने प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी से संसद में पूछा क्या उनकी बहू पब्लिक सेक्टर की इंश्योरेंस के लिए इंश्योरेंस एजेंट का काम करती है (ओरिएंट फायर एंड इंश्योरेंस) और वो भी प्रधानमंत्री हाउस के पते पर और उसके जरिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके पीएमओ के अधिकारियों का इंश्योरेंस करती हैं। जबकि वो अभी इतालवी नागरिक ही हैं (ये फेरा के उल्लंघन का मामला भी था) । संसद में हंगामा हो गया। कुछ दिनों बाद एक लिखित जवाब में उन्होंने इसे स्वीकार किया और कहा हां ऐसा हुआ था और ऐसा गलती से हुआ था लेकिन अब सोनिया गांधी ने इंश्योरेंस कंपनी से इस्तीफा दे दिया है। जनवरी 1970 में श्रीमती इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और सोनिया ने पहला काम किया और ये था खुद को वोटर लिस्ट में शामिल कराने का। ये नियमों और कानूनों का सरासर उल्लंघन था। इस आधार पर उनका वीसा भी रद्द किया जा सकता था तब तक वो इतालवी नागरिक के रूप में कागजों में दर्ज थीं। जब मीडिया ने इस पर हल्ला मचाया तो मुख्य निर्वाचक अधिकारी ने उनका नाम 1972 में डिलीट कर दिया। लेकिन जनवरी 1973 में उन्होंने फिर से खुद को एक वोटर के रूप में दर्ज कराया जबकि वो अभी भी विदेशी ही थीं और उन्होंने पहली बार भारतीय नागरिकता के लिए अप्रैल 1973 में आवेदन किया था।
सोनिया गांधी आधुनिक रॉबर्ट क्लाइव:
मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि सोनिया गांधी भारतीय कानूनों का सम्मान नहीं करतीं। अगर कभी उन्हें किसी मामले में गलत पाया गया या कठघरे में खडा किया गया तो वो हमेशा इटली भाग सकती हैं। पेरू में राष्ट्रपति फूजीमोरी जो खुद को पेरू में पैदा हुआ बताते थे , जब भ्रष्टाचार के मामले में फंसे और उन पर अभियोग चलने लगा तो वो जापान भाग गये और जापानी नागरिकता के लिए दावा पेश कर दिया। 1977 में जब जनता पार्टी ने चुनावों में कांग्रेस को हराया और नई सरकार बनाई तो सोनिया अपने दोनों बच्चों के साथ नई दिल्ली के इतालवी दूतावास में भाग गईं और वहीं छिपी रहीं यहां तक की इस मौके पर उन्होंने इंदिरा गांधी को भी उस समय छोड़ दिया। ये बात अब कोई नई नहीं है बल्कि कई बार प्रकाशित भी हो चुकी है। राजीव गांधी उन दिनों सरकारी कर्मचारी (इंडियन एयरलाइंस में पायलट) थे। लेकिन वो भी सोनिया के साथ इस विदेशी दूतावास में छिपने के लिए चले गये। ये था सोनिया का उन पर प्रभाव। राजीव 1978 में सोनिया के प्रभाव से बाहर निकल चुके थे लेकिन जब तक वो स्थितियों को समझ पाते तब तक उनकी हत्या हो चुकी थी। जो लोग राजीव के करीबी हैं , वो जानते हैं कि वो 1981 के चुनावों के बाद सोनिया को लेकर कोई सही कदम उठाने वाले थे। उन्होंने सभी प्रकार के वित्तीय घोटालों और 197८ के चुनावों में हार के लिए सोनिया को जिम्मेदार माना था। मैं तो ये भी मानता हूं कि सोनिया के करीबी लोग राजीव से घृणा करते थे। इस बात का जवाब है कि राजीव के हत्यारों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के मृत्युदंड के फैसले पर मर्सी पीटिशन की अपील राष्ट्रपति से की गई। ऐसा उन्होंने इंदिरा गांधी के हत्यारे सतवंत सिंह के लिए क्यों नहीं किया या धनंजय चट्टोपाध्याय के लिए नहीं किया ? वो लोग जो भारत से प्यार नहीं करते वो ही भारत के खजाने को बाहर ले जाने का काम करते हैं, जैसा मुहम्मद गौरी, नादिर शाह और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के रॉबर्ट क्लाइव ने किया था। ये कोई सीक्रेट नहीं रह गया है। लेकिन सोनिया गांधी तो उससे भी आगे निकलती हुई लग रही हैं। वो भारतीय खजाने को जबरदस्त तरीके से लूटती हुई लग रही हैं।
जब इंदिरा गांधी और राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे तो एक भी दिन ऐसा नहीं हुआ जब क्रेट के क्रेट बहुमूल्य सामानों को बिना कस्टम जांच के नई दिल्ली या चेन्नई इंटरनेशनल एयरपोर्ट से रोम न भेजा गया हो। सामान ले जाने के लिए एयर इंडिया और अलीटालिया को चुना जाता था। इसमें एंटिक के सामान , बहुमूल्य मूर्तियां , शॉल्स, आभूषण , पेंटिंग्स , सिक्के और भी न जाने कितनी ही बहुमूल्य सामान होते थे। ये सामान इटली में सोनिया की बहन अनुष्का उर्फ अलेक्सांद्रो मैनो विंसी की रिवोल्टा की दुकान एटनिका और ओरबासानो की दुकान गणपति पर डिसप्ले किया जाता था। लेकिन यहां उनकी बिक्री ज्यादा नहीं थी इसलिए इसे लंदन भेजा जाने लगा और सोठेबी और क्रिस्टी के जरिए बेचा जाने लगा। इस कमाई का एक हिस्सा राहुल गांधी के वेस्टमिनिंस्टर बैंक और हांगकांग एंड शंघाई बैंक की लंदन स्थित शाखाओं में भी जमा किया गया। लेकिन ज्यादातर पैसा गांधी परिवार के लिए काइमन आइलैंड के बैंक आफ अमेरिका में है। राहुल जब हार्वर्ड में थे तो उनकी एक साल की फीस बैंक आफ अमेरिका काइमन आइलैंड से ही दी जाती थी। सुब्रमन्यम ने  वाजपेई सरकार को इस बारे में बार-बार बताया, लेकिन उन्हें विश्वास नही हुआ , तब सुब्रमन्यम ने  दिल्ली हाईकोर्ट में एक पीआईएल दायर की। कोर्ट ने इस मामले में सीबीआई को इंटरपोल और इटली सरकार की मदद लेकर जांच करने को कहा। इंटरपोल ने इन दोनों दुकानों की एक पूरी रिपोर्ट तैयार करके सीबीआई को भी दी, जिसे कोर्ट ने सीबीआई से सुब्रमन्यम को दिखाने को भी कहा , लेकिन सीबीआई ने ऐसा कभी नहीं किया। सीबीआई का झूठ तब भी अदालत में सबके सामने आ चुका था जब उसने अलेक्सांद्रो मैनो का नाम एक आदमी का बताया और विया बेलिनी 14 , ओरबासानो को एक गांव का नाम बताया था जबकि ये मैनो के निवास की स्ट्रीट का पता था। अलबत्ता सीबीआई के वकील द्वारा इस गलती के लिए अदालत के सामने खेद जाहिर करना था लेकिन उसे नई सरकार द्वारा एडिशिनल सॉलिसीटर जनरल के पद पर प्रोमोट कर दिया गया।
एकदम ताजा मामला 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले से जुड़ा हुआ है। पौने दो लाख करोड के 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में 60 हजार करोड रुपए घूस बांटी गई जिसमें चार लोग हिस्सेदार थे। इस घूस में सोनिया गांधी की दो बहनों का हिस्सा 30-30 प्रतिशत है। प्रधानमंत्री सब कुछ जानते हुए भी मूक दर्शक बने रहे। इस घोटाले में घूस के तौर पर बांटे गए 60 हजार करोड़ रुपये का दस प्रतिशत हिस्सा पूर्व संचार मंत्री ए राजा को गया। 30 फीसदी हिस्सेदारी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करुणानिधि को और 30-30 प्रतिशत हिस्सेदारी सोनिया गांधी की दो बहनों नाडिया और अनुष्का को गया है। शेयर जरुर करे ........
 सुब्रमण्यम स्वामी से प्राप्त सुचना के आधार पर.....................

Saturday, July 21, 2012

इस्पात(स्टील) बनाना भारत ने सिखाया


इस्पात(स्टील) बनाना भारत ने सिखाया और आप जानते है कि ये एक बड़ी तकनीकी का काम है। एक अयस्क लोहे से मनचाहा स्टील या इस्पात बनाना भारत ने दुनिया को सिखाया और ये तकनीकी इस देश में आज की नही है बहुत साल पहले की विकसित की गयी है।
एक अंग्रेज़ आया हमारे भारत में १७९५ में उसने एक सर्वेक्स्ण किया। उस अंग्रेज के कुछ वाक्या सुनाता हूं। अंग्रेजी में उसने लिखा में आपको हिंदी में बताता हूं,
उसने लिखा की भारत में इस्पात बनाने का काम पिछले १५०० साल से हो रहा है। तो एक हिसाब लगाओ कि १८०० ई० में १५०० साल घटा दो तो लगभग तीसरी सदी से इस देश में इस्पात बनाने का काम हो रहा है।
मैने जो सर्वेक्स्ण किया है वो भारत के पस्चिमी, पूर्वी और थोड़ा सा ड्क्शिण इलाके का किया तो मैने इनमे १५००० छोटे कारखाने देखें हैं। मतलब small enterpreneurship का बेतोड़ नमूना था। आगे सुनो वो कहता है कि एक दिन में अगर एक कारखाने का उत्पादन करीबन ५०० किलो तक है और हरएक कारखाना २४ घंटे चलता है। उसमें मज्दूरों की तीन तीन पालियां हैं। जो सबसे महत्तवपूर्ण उपकर्ण जो है- भट्टी लोहा गलाने के लिये इस्तेमाल की जा रही है जिसे हम आजकल blast furnace कहते हैं, ये तो एक बात अब सुनो कि जो उस ब्लास्ट फ़रनेस बनाने की कीमत है वो १५ रुपय हैं और ये आकणा उसी समय का है।
एक टन स्टील बनाने का खर्चा ८० रुपय है तो एक किलो स्टील बनाने का खर्चा ८० पैसे। आज एक किलो स्टील की कीमत क्या है??? ४०-८० रुपेय तो बात ये है कि जब हम अपने भारतीय तरीके से बनाते थे तो वो ८० पैसे थे और अब जब यूरोपियन तरीके से बनाते हैं तो कीमत ५० रुपेय हो गयी तो करीबन ८२ गुना की बढ़ोत्री??
एक बात और वो कहता है कि भारत का स्टील उस समय निर्यात प्रीमियम दामों पर होता था मतलब सबसे महंगा बिकता था??
अंत में वो लिखता है कि अगर भारत के व्यापारी उस स्टील के बदले में सोना भी मांगे तो खरीदार देदे.... वो इसलिये कह रहा है क्योंकि भारत ही में एसा स्टील बनता है जो जिसमें जंग नही लगता। इसका उदाहर्ण किसी से छुपा नही है भैया नही देखा तो जाके लोह स्तंब देख आयो वो भारतीय स्टील का बेजोड़ उदाहरण हैं खुल्ले में बर्सों से खड़ा है अब तक जंग नही लगा।

ऐसा नही है कि एसा स्टील और कहीं बनता ही नही था स्वेडन मे बनता था। पर यहां ८० रुपय का था और वहां ८०००० रुपय की लागत पे बनता था??
एक बात और है जो उसने कही की भारत की जो भट्टी है वो इतनी हलकी है कि उसे बैलगाड़ी मे रख कर कहीं भी असानी से ले जाया जा सकता है।

तो आज से ऐसा कहना छोड़ो की हमे कुछ नही पता हम तो शुरु से ही कमजोर थे कोई तकनीकी नही थी, कुछ नही था, बंजारे थे अरे हमारे पूर्वज तो गुरू थे पूरे विश्व के??

"अंग्रेजों ने टीका लगाना भारत से सीखा"


आपको आज एक तथ्य बताता हूं धर्य और ध्यान से पढ़ें १७१० के समय में एक अंग्रेज़ भारत आया था। उसका नाम था डा० ओलीवर ये भारत में आके कलकत्ता शहर में आया बंगाल घूमा और सब घूम घाम के इसने एक डायरी लिखी। उस डायरी के एक पन्ने का एक छंद सुनाता हूं आपको...
वो ये कह्ता है, कि मैने भारत में आकर पहली बार देखा की चेचक जैसी महामारी को कितनी आसानी के साथ भारत वासी ठीक कर लेते हैं। आपको मालूम है १७वी सतावदी में पूरे विश्व में एक महामारी फ़ैली थी, पूरे विश्व भर में इलाज़ नही था। अफ़रीका में लेटिन अमेरीका में लाखों लोग मर गये थे इसके कारण ये महामारी थी बिमारी नही थी।
अब उस डा० ने क्या देखा की भारतवासी इस बीमारी से लड़्ने के लिये टीका लगाते थे और वो कहता है की मैने दूनिया में पहली बार देखा डा० होते हुए। डा० ओलीवर एक बहुत बड़ा नाम है इंगलैण्ड में देखो गूगल करके।
तो वो अपनी डायरी में लिखता है कि उस समय भारतवर्श मे चेचक की बिमारी सबसे कम है क्योंकी टीका लगता था। अब टीका लगाने का तरीका क्या है। टीका जो लगता था एक सुई जैसी वस्तू से लगता था जिसके बाद थोड़ा सा ज्वर होता था और तीन दिन में आदमी के शरीर में चेचक से लड़ने की प्रतीरोधक शक्ती मिल जाती थी। ए बार टीका जिसने ले लिया जिंदगी भर के लिये वो चेचक से मुक्त हो गया।

तो अब मेरी लिखी बात पे आप गर्व करना की.......
"अंग्रेजों ने टीका लगाना भारत से सीखा"

Monday, July 16, 2012

युवाओं के चारित्रिक पतन

एक काम हम सबको शुरू करना है, हमारे समाज और फिल्मों में सरकार द्वारा परोसी जा रही अश्लीलता को समाप्त करना....जब तक सन्नी लियोन जैसी वैश्यायों को भारत सरकार कोई फिल्म बनाने की छूट देती रहेगी तब तक मुझे लगता है कि यह गुवाहाटी जैसी घटनाओं का रुकना असंभव है। 


हमारे देश के युवाओं के चारित्रिक पतन में अगर किसी का सबसे बड़ा दोष है तो वह है हमारी फिल्मों और टी.वी.कार्यक्रमों में बढ़ रही अश्लीलता का...अभी तक तो फिल्मों में होने वाली घटनाएं या द्रश्य सिर्फ खतरनाक थीं, पर अब तो हमारे युवायों और छोटे-छोटे बच्चों का सर्वनाश होने जा रहा है...क्यूँकी कनाडा की एक वेश्या को फिल्म बनाने की छूट भारत सरकार ने दे दी है। इस वेश्या की फिल्म जिस्म-२ जल्द ही हमारे सिनेमाघरों में आने वाली है, उसका नतीजा यह होने वाला है कि कोई भी बच्चा या युवा सबसे पहले इस वेश्या के बारे में जानने की कोशिश करेगा और कहीं से उसने इन्टरनेट खोल लिया तो उसके जीवन का कबाडा करने वाली है यह सन्नी लियोन।

आओ, हम सब नव भारत के क्रांतिकारी जो देश की अनेक बुराइयों के खिलाफ लड़ रहे हैं वे सब इस लड़ाई की शुरुआत भी करें.....जितना संभव हो सके जिस्म-२ और इस वेश्या का विरोध करें। हम चाहें तो उच्चतम न्यायालय में इस फिल्म की रिलीज़ पर प्रतिबन्ध लगाने की एक याचिका भी डाल सकते हैं। समय हमारे पास बहुत कम है और अगर एक बार इस वैश्या का प्रवेश भारतीय फिल्मों में हो गया तो हमारे छोटे भाई-बहनों और लाखों युवायों के चारित्रिक पतन को रोकना असंभव सा हो जाएगा। क्या दुर्दशा उनके चरित्र की होने वाली है..वो बयाँ करना बड़ा मुश्किल है ?

इससे पहले कि हमारे छोटे भाई- बहनों के साथ यह आघात हो, अधिक से अधिक संख्या में एकजुट होकर विरोध करें और सेंसर बोर्ड को दिखला दें कि आप जो कुछ परोसेंगे वो हम ऐसे ही स्वीकार नहीं करने वाले। हम सब ऋषि-मुनियों के वंसज हैं। हम भूखे रहकर मरना पसंद करते हैं लेकिन अपनी संस्कृति, सभ्यता और अपना चरित्र खोकर अमीर बनना नहीं।

आपसे विनम्रतापूर्वक निवेदन कि जरूर विरोध करें और सेंसर बोर्ड तक हमारी बातों को पहुंचाने में अपना सहयोग दें...ऐसी राक्षसी ताकतों से लड़ने के लिए हम सब को एकजुट होना होगा....आपसे सहयोग अपेक्षित है।

वंदे मातरम् 

Sunday, July 8, 2012

ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत् । तेन त्यक्तेन भुंजीथा मा गृधः कस्य स्विद्धनम् ।।१ ।।



ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत् ।
तेन त्यक्तेन भुंजीथा मा गृधः कस्य स्विद्धनम् ।।१ ।।
ईश, जगत में जो कुछ है सब में रमकर गति करता है ।
कण-कण को गतिमान बनाकर सकल सृष्टि वह रचता है।।
त्याग भाव से भोग करे नर , लोभ नहीं मन में लावे ।
धन किसका ?सब कुछ ईश्वर का, सदा ध्यान में यह आवे ।।१ ।।
कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छ्तम् समाः ।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ।।२ ।।
करते हुए कर्म सौ वर्षों तक सुख का तू भोग करे ।
नहीं अन्य कोई पथ तेरा इसी मार्ग पर गमन करे।।
कर्मठ बनकर ही जीवन – यापन की इच्छा बनी रहे।
लिप्त कर्म नहिं होते नर में , भोग-भाव से विरत रहे।।२ ।।
असुर्य्या नाम ते लोका अन्धेन तमसाऽऽवृताः ।
तांस्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः ।।३ ।।
पाप कर्म में पड़कर जो जन आत्म – हनन नित करते हैं।
भोग भाव में लिप्त हुए जो अधम मार्ग पर चलते हैं।।
मरकर अधम योनि में जाते दुःख सागर में गिरते हैं।
अन्धकार से घिरे हुए वे असुर लोक में पड़ते हैं ।।३ ।।
अनेजदेकं मनसो जवीयो नैनद्देवा आप्नुवन् पूर्वमर्षत् ।
तद्धावतोऽन्यानत्येति तिष्ठत्तस्मिन्नपो मातरिश्वा दधाति ।।४ ।।
एक मात्र स्वामी जगती का नहीं कभी वह चलता है।
चक्षुरादि से प्राप्त न , मन से ,तीव्र गमन वह करता है।।
अचल ब्रह्म की धावन शक्ति से सब पीछे रह जाते।
ब्रह्म शक्ति से , वायु प्राण को , जीव कर्म , धारण करते ।।४ ।।
तदेजति तन्नैजति तद्दूरे तद्वन्तिके ।
तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः ।।५ ।।
वह गतिहीन वही गतिदाता रचता और चलाता है।
अज्ञानी से दूर सदा ज्ञानी के हिय में बसता है।।
जड़ – चेतन सबके अन्तर में एक उसी की आभा है।
बाह्य जगत में मात्र चमकती उसी ब्रह्म की प्रतिभा है।।५ ।।
यस्तु सर्वाणि भूतान्यात्मन्नेवानुपश्यति ।
सर्व भूतेषुचात्मानं ततो न विजुगुप्सते ।।६ ।।
जो लखता अपनी आत्मा में सभी भूत प्राणी समुदाय।
भौतिक प्राणि मात्र में अपनी आत्मा जिसको सदा लखाय।।
शांत भाव धारण कर लेता प्राणि मात्र से वैर विहाय।
निंदा स्तुति को छोड़ बने वह प्राणि मात्र का मित्र सहाय ।।६ ।।
यस्मिन् सर्वाणि भूतान्यात्मैवाभूद्विजानतः ।
तत्र को मोहः कः शोकः एकत्वमनुपश्यतः ।।७ ।।
भूत चराचर सबको अपने जैसा समझ लिया जिसने।
एक भाव से देख रहा है जड़ चेतन जगको जिसने।
उसे कहाँ से मोह सताए वह दुःख पाएगा कैसे?
शोक भाव से छूट जाएगा,विचरे सदा मुदित मन से।।७ ।।
स पर्य्यगाच्छुक्रमकायमव्रणमस्नाविरम् शुद्धमपापविद्धम् ।
कविर्मनीषी परिभू: स्वयम्भूर्याथातथ्यतोऽर्थान्
व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्यः ।।८ ।।
परमात्मा सर्वत्र प्राप्त है ,शुद्ध स्वरुप अकाया है।
व्रण नस – नाड़ी रहित ईश वह शुद्ध स्वरुप सवाया है।।
पाप कर्म से रहित प्रभू है अखिल भुवन में छाया है।
वह कवि ज्ञानी है जग के अणु अणु में वही समाया है ।।८( क)।।
स्पष्ट रूप से वही मनीषी ,मन- प्रेरक बन जाता है।
अपनी ही सत्ता से स्थित , वह स्वयंभू : कहलाता है।।
सदा निरंतर युग – युग से वह रचना करता जाता है।
जगती के सारे पदार्थ वह याथातथ्य बनाता है।।८(ख )।।
अन्धन्तमः प्रविशन्ति येऽविद्यामुपासते ।
ततो भूय इव ते तमो य उ विद्यायाम् रताः ।।९ ।।
अंधकार से घिरे हुए जो लोक तुच्छ कहलाते हैं।
सदा अविद्या में रत रहते वे जन उनमें जाते हैं।।
उनसे घोर अन्धतम स्थिति में वे प्रवेश पा जाते हैं।
जो विद्या में रत हो अपनी पूरी आयु बिताते हैं।।९ ।।
अन्यदेवाहुर्विद्ययाऽन्यदाहुरविद्यया ।
इति शुश्रुम धीराणाम् ये नस्तद्विचचक्षिरे ।।१० ।।
विद्या और अविद्या का फल ऋषिगण हमें बताते हैं।
इनके फल हैं भिन्न – भिन्न वे यही हमें समझाते हैं।।
धीरों से विद्वानों से हम ऐसा सुनते आते हैं।
कृपाभाव – धारक ऋषिगण उपदेश हमें यह करते हैं।।१० ।।
विद्याम् चाविद्याम् च यस्तद्वेदोभयम् सह ।
अविद्यया मृत्युम् तीर्त्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते ।।११ ।।
विद्या और अविद्या को जो एक साथ लेता पहचान ।
उभय तत्व को धारण करता निज जीवन में एक समान ।।
धारण करे अविद्या तो नर , बचे मृत्यु से ,बने महान ।
विद्या के द्वारा पाता वह मोक्ष परमपद का वरदान।।११ ।।
अन्धन्तमः प्रविशन्ति येऽसम्भूतिमुपासते ।
ततो भूय इव ते तमो य उ सम्भूत्याम् रताः ।।१२।।
अंधकार से घिरे हुए जो लोक तुच्छ कहलाते हैं ।
असम्भूति में ही रत रहते वे जन उनमें जाते हैं ।।
उनसे घोर अन्धतम स्थिति में वे प्रवेश पा जाते हैं ।
जो रत हो सम्भूति सदा ही पूरी आयु बिताते हैं।।१२।।
अन्यदेवाहु:संभवादन्यदाहुरसंभवात् ।
इति शुश्रुम धीराणाम् ये नस्तद्विचचक्षिरे ।।१३ ।।
असम्भूति – सम्भूति भिन्न हैं ऋषिगण हमें बताते हैं।
इनके फल हैं भिन्न – भिन्न वे यही हमें समझाते हैं।।
धीरों से विद्वानों से हम ऐसा सुनते आते हैं।
कृपाभाव – धारक ऋषिगण उपदेश हमें यह करते हैं।।१३ ।।
सम्भूतिम् च विनाशं च यस्तद्वेदोभयम् सह ।
विनाशेन मृत्युम् तीर्त्वा सम्भूत्याऽमृतमश्नुते ।।१४।।
विनाश औ ‘ सम्भूति तत्व को एक साथ लेता पहचान।
उभय तत्व को धारण करता निज जीवन में एक समान।।
विनाश द्वारा बचे मृत्यु से ,मानव जीवन बने महान।
पाता नर सम्भूति धार कर मोक्ष परमपद का वरदान।।१ ४।।
हिरंमयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखं ।
तत्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ।। १५।।
भौतिक जगत सुनहला ढक्कन बन मनुष्य को भाता है ।
इससे ढके सत्य का मुख मानव भ्रम में पड़ जाता है ।।
हे पूषन् ! हो कृपा तुम्हारी स्वर्णिम ढक्कन हट जाए ।
सत्य धर्म का दर्शन कर लूँ जीवनपावन बन जाए ।। १५।।
पूषन्नेकर्षे यम सूर्य्य प्राजापत्य व्यूहरश्मीन् समूह ।
तेजोयत्ते रूपं कल्याणतमं तत्ते पश्यामि योऽसावसौ
पुरुषः सोऽहमस्मि ।।१६।।
एक मात्र ऋषिवर यम पूषन् !सूर्य प्रजापति नमन करूँ।
शमन करो प्रभु स्वर्ण रश्मियाँ ,लोक – लोभ को शांत करूँ।।
दर्शन हो कल्याण रूप का ,तेजोमय का , पावन का।
हो कल्याण रूप मम जीवन बन जाए पावन तुझ सा ।।१६।।
वायुरनिलममृतमथेदम् भस्मान्तं शरीरं ।
ओ३म् क्रतो स्मर कृतं स्मर क्रतो स्मर कृतं स्मर ।।१७ ।।
प्राण वायु मिल जाय अनिल में आत्मा अमर व नित्य स्वरुप।
यह शरीर जलकर रह जाता मात्र अंत में भस्म स्वरुप।।
क्रतो सुमिर तू ओ३म् नित्य ही जीवन शुद्ध पवित्र करो।
किए कर्म को याद करो नर ,किए कर्म को याद करो ।।१७ ।।
अग्ने नय सुपथा राये अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान् ।
युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठांते नम उक्तिम् विधेम ।।१८ ।।
हे प्रकाश के पुंज प्रभो !तुम सब कर्मों के ज्ञाता हो।
चला सुपथ पर वैभव दो प्रभु कृपा भाव से दाता हो।।
कुटिल कर्म को , पाप कर्म को , हमसे दूर करो भगवन।
बार – बार हम इसी भाव से प्रभुवर करते तुझे नमन ।।१८ ।
श्री चिंतामणि वर्मा जी ,मांडले बर्मा

Friday, July 6, 2012

वैश्विक षड्यन्त्र ....

वैश्विक षड्यन्त्र ....

देश की लगभग 99 % जनता को लगता है कि देश व दुनियाँ जैसे सामने से दिख रही है वैसे ही सरलता, सहजता, समरसता, प्रेम, सदभावना, समझदारी, लोकतान्त्रिक एवं न्यायपूर्ण तरीको से चल रही है। दुर्भाग्य से जैसे हमें दिख रहा है वैसे दुनियाँ नहीं चल रही है। उदाहरण के तौर पर हम चार विषय प्रस्तुत कर रहे हैं।
1. राजनैतिक षड्यन्त्र : भारत का प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री, विदेशमंत्री व रक्षामंत्री ऐसा व्यक्ति बनना चाहिए जो अमेरिका व अमेरिकन कंपनियों तथा अन्य विदेशी कंपनियों के हित में नितियाँ बनाने वाला हो, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय नितियों व विषयों पर अमेरिका के नितियों का समर्थन हो, इसके लिए विदेशी ताकतें सामाजिक व आर्थिक रूप से एक लम्बी कार्ययोजना के तहत काम करती हैं। मिडिया मैनेजमेन्ट से लेकर इमेज-बिल्डिंग के लिए बहुत ही बुद्धिमत्ता के साथ काम करती हैं। आने वाले 5 वर्षों से लेकर 50 वर्षों तक भारत के विकास के माडल कैसे हों जिससे कि विदेशी कंपनियाँ अपनी तकनीक, अपनी फैक्ट्रियाँ एवं अनुसंधान उसी दिशा में करें और विदेशों की प्रतिबंधित दवा, हथियार व अन्य उत्पाद भारत में खपते रहें, भारत एक डैम्पिंग सेन्टर बन जाए, इस प्रकार बहुत से ऐसे विषय हैं। हमारी संसद में भी अमेरिका, यूरोप व अन्य विदेशी कंपनियों तथा उन देशों के समर्थक लोगों को बाकायदा फाइनेंश करके तथा अनेक प्रकार से परोक्ष रूप से मदद करके संसद में तथा विधानसभाओं में भेजा जाता है, जिससे की देश के जल, जंगल, जमीन, भू-सम्पदाओं पर विदेशी कंपनियों का कब्जा हो सके। F.D.I.यानी विदेशी पूँजी निवेश के जरिए विदेशी कंपनियों व भ्रष्टाचार करके देश को लूटने वाले लोगों का भारत के सभी आर्थिक संस्थानों, रिटेल से लेकर शेयर मार्केट तक पूरी अर्थव्यवस्था पर इनका वर्चस्व कायम हो सके, इसके लिए वे बहुत ही कूटनीतिक तरीके से ये विदेशी ताकतें तात्कालिक, मध्यकालिक व मध्यकालिक व दिर्घकालिक योजना के तहत काम करती हैं।
2. आर्थिक षड्यन्त्र : किसी भी देश की सबसे बड़ी ताकत होती है वहाँ की मजबूत अर्थव्यवस्था। पहले देशों को भौगोलिक रूप से गुलाम बनाकर आर्थिक रूप से लूटा जाता था। अब आर्थिक रूप से गुलाम बनाने का बहुत बड़ा कुचक्र चल रहा है। इस आर्थिक लूट के चक्रव्यूह के जाल का ताना-बाना ऐसे बुना जाता है कि सामान्य व्यक्ति की समझ में तो ये बातें आ ही नहीं सकती। बड़े-बड़े बुद्धिमान लोग भी धोखा खा जाते हैं। किसी भी देश की G.D.P.यानी अर्थव्यवस्था के तीन मुख्य आधार होते हैं। अग्रीकल्चर, इन्डस्ट्री एवं सर्विसेज। हमारे जल, जंगल, जमीन, भू-सम्पदा एवं बौद्धिक सम्पदाओं का विदेशी कंपनियाँ पूरा शोषण व दोहन कर रही हैं। आज रिटेलर से लेकर शेयर मार्केट तक, हैल्थ, एजुकेशन, रिसर्च एण्ड डेवलप्मेन्ट, मीडिया, रक्षा सामान, पेट्रोलियम प्रोडक्ट से लेकर हमारे देवी-देवता, बच्चों के खिलौने, टी.वी., गाड़ी, मोबाईल, साबुन, शैम्पू, टूथपेस्ट से लेकर जीवन की हर जरूरत का हर सामान विदेशी कंपनियाँ बेच रही हैं। एक तरह से हमने अपना पूरा देश विदेशी कंपनियों के हाथों में गिरवी रख दिया है। अमेरिका, चीन, जर्मनी व जापान आदि स्वदेशी के रास्ते पर चलकर खुद को स्वावलम्बी बना रहे हैं। हम भारतवासी भी बिना स्वदेशी के अपने देश को स्वावलम्बी नहीं बना सकते।
3. सामाजिक षड्यन्त्र : सामाजिक रूप से देश का कौन नेतृत्व करेगा, सामाजिक आवाज के रूप में किसे सुना जायेगा। किसे आर्थिक, राजनैतिक व अन्य विषयों में विशेषज्ञ का दर्जा मिलेगा। कौन विश्वसुन्दरी होगी? शोश्यल एक्टिविस्ट के रूप में देश में किसे स्थापित करना है। इसके लिए विदेशी सरकारें, विदेशी कंपनियाँ एवं विदेशी फाउंडेशन्स भारतीय एन.जी.ओ. को दान करती हैं। जो विदेशी कंपनियाँ अमेरिका व यूरोप के हितों में काम करें, उसे बाकायदा अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा जाता है। जिससे उनकी देश में प्रतिष्ठा बढ़े, उन्हें विश्वसुन्दरी आदि के पुरस्कार दिये जाते हैं, जिससे कि विदेशी कंपनियों का सामान बेचने के लिए उनका इस्तेमाल किया जा सके। ऐसे कानून पास करवाने के लिए भी विदेशी कंपनियाँ एन.जी.ओ. को दान देती हैं, जिससे उस देश से उनको जरूरी सुचनाएँ प्राप्त करने में आसानी हो और सरकारी संस्थाएँ कमजोर पड़ें जिससे विदेशी कंपनियों व प्राईवेट क्षेत्र के बड़े-बड़े पूँजीपति अपना स्वार्थ सिद्ध कर सकें। ये सब कार्य इतनी होशियारी से किया जाता है कि इनके खिलाफ उठाने वाले व्यक्ति को ही ये अपराधी या दोषी के रूप में प्रमाणित कर देते हैं।
4. नैतिक षड्यन्त्र : हमारे देश कि संस्कृति, सभ्यता, संयम, सदाचार एवं प्राचीन मूल्य, आदर्शों व गौरव के सभी प्रतीकों, हमारे महापुरुषों, देवी-देवताओं, गौ, गंगा, गायत्री व वेदों से लेकर भगवान राम, कृष्ण व शिव आदि महापुरुषों के बारे में झूठी बातें प्रचारित करना। महापुरुषों को काल्पनिक बताना तथा रामायण व महाभारत आदि महाकाव्यों को उपन्यास बताकर अपने प्राचीन गौरव को झुठलाने का प्रयास करना। टी.वी. पर ऐसे सीरियल व मनोरंजन के नाम पर ऐसी फिल्में बनवाना व उसमें भोग विलास व दुराचार को ग्लैमर के साथ प्रस्तुत करके देश के लोगों के पुरुषार्थ व चरित्र को नष्ट करने का एक बहुत बड़ा षड्यन्त्र रचा जाता है। ऐसे अश्लील कार्यक्रमों के लिए विज्ञापन खूब मिलें, इसके लिए टी.आर.पी. तय करने वाली कंपनी भी 100% विदेशी नियन्त्रण वाली है। वह टी.आर.पी. बताने वाली विदेशी कंपनी परोक्ष रूप से देश के सभी चैनलों का नियन्त्रण करती हैं। देश की भाषा, भेषज्, भजन, भोजन, भाव व संस्कृति के विनाश का बहुत बड़ा षड्यन्त्र चल रहा है। देश के चरित्र को नष्ट करने का ये चक्रव्यूह हमने नहीं तोड़ा तो देश की बहुत बड़ी हानि हो रही है और आगे बड़ा खतरा आने वाला है। इसी तरह देश में जाति, धर्म व मजहब के नाम पर भी बहुत प्रकार के षड्यन्त्र चलते रहते हैं। 
आंदोलन का नेतृत्व करने वाले कार्यकर्ताओं को इन सब बातों का गंभीरता से ध्यान रखकर सावधानी पुर्वक खुद इन षड्यन्त्रों से बचना चाहिए व सामान्य कार्यकर्ताओं को भी सावधान करते रहना चाहिए।

Wednesday, July 4, 2012

क्या सच में "आजादी बिना खड़क बिना ढाल" के मिली ?


क्या सच में "आजादी बिना खड़क बिना ढाल" के मिली ?

कृपया निम्न तथ्यों को बहुत ही ध्यान से तथा मनन करते हुए पढ़िये:-

1. 1942 के ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन को ब्रिटिश सरकार कुछ ही हफ्तों में कुचल कर रख देती है।
2. 1945 में ब्रिटेन विश्वयुद्ध में ‘विजयी’ देश के रुप में उभरता है।
3. ब्रिटेन न केवल इम्फाल-कोहिमा सीमा पर आजाद हिन्द फौज को पराजित करता है, बल्कि जापानी सेना को बर्मा से भी निकाल बाहर करता है।
4. इतना ही नहीं, ब्रिटेन और भी आगे बढ़कर सिंगापुर तक को वापस अपने कब्जे में लेता है।
5. जाहिर है, इतना खून-पसीना ब्रिटेन ‘भारत को आजाद करने’ के लिए तो नहीं ही बहा रहा है। अर्थात् उसका भारत से लेकर सिंगापुर तक अभी जमे रहने का इरादा है।
6. फिर 1945 से 1946 के बीच ऐसा कौन-सा चमत्कार होता है कि ब्रिटेन हड़बड़ी में भारत छोड़ने का निर्णय ले लेता है? हमारे शिक्षण संस्थानों में आधुनिक भारत का जो इतिहास पढ़ाया जाता है, उसके पन्नों में सम्भवतः इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिलेगा। हम अपनी ओर से भी इसका उत्तर जानने की कोशिश नहीं करते- क्योंकि हम बचपन से ही सुनते आये हैं- दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल, साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल। इससे आगे हम और कुछ जानना नहीं चाहते। (प्रसंगवश- 1922 में असहयोग आन्दोलन को जारी रखने पर जो आजादी मिलती, उसका पूरा श्रेय गाँधीजी को जाता।

मगर “चौरी-चौरा” में ‘हिंसा’ होते ही उन्होंने अपना ‘अहिंसात्मक’ आन्दोलन वापस ले लिया, जबकि उस वक्त अँग्रेज घुटने टेकने ही वाले थे! दरअसल गाँधीजी ‘सिद्धान्त’ व ‘व्यवहार’ में अन्तर नहीं रखने वाले महापुरूष हैं, इसलिए उन्होंने यह फैसला लिया। हालाँकि एक दूसरा रास्ता भी था- कि गाँधीजी ‘स्वयं अपने आप को’ इस आन्दोलन से अलग करते हुए इसकी कमान किसी और को सौंप देते। मगर यहाँ ‘अहिंसा का सिद्धान्त’ भारी पड़ जाता है- ‘देश की आजादी’ पर।) यहाँ हम 1945-46 के घटनाक्रमों पर एक निगाह डालेंगे और उस ‘चमत्कार’ का पता लगायेंगे, जिसके कारण और भी सैकड़ों वर्षों तक भारत में जमे रहने की ईच्छा रखने वाले अँग्रेजों को जल्दीबाजी में फैसला बदलकर भारत से जाना पड़ा। (प्रसंगवश- जरा अँग्रेजों द्वारा भारत में किये गये ‘निर्माणों’ पर नजर डालें- दिल्ली के ‘संसद भवन’ से लेकर अण्डमान के ‘सेल्यूलर जेल’ तक- हर निर्माण 500 से 1000 वर्षों तक कायम रहने एवं इस्तेमाल में लाये जाने के काबिल है!)

लालकिले के कोर्ट-मार्शल के खिलाफ देश के नागरिकों ने जो उग्र प्रदर्शन किये, उससे साबित हो गया कि जनता की सहानुभूति आजाद हिन्द सैनिकों के साथ है। इस पर भारतीय सेना के जवान दुविधा में पड़ जाते हैं। फटी वर्दी पहने, आधा पेट भोजन किये, बुखार से तपते, बैलगाड़ियों में सामान ढोते और मामूली बन्दूक हाथों में लिये बहादूरी के साथ “भारत माँ की आजादी के लिए” लड़ने वाले आजाद हिन्द सैनिकों को हराकर एवं बन्दी बनाकर लाने वाले ये भारतीय जवान ही तो थे, जो “महान ब्रिटिश सम्राज्यवाद की रक्षा के लिए” लड़ रहे थे! अगर ये जवान सही थे, तो देश की जनता गलत है; और अगर देश की जनता सही है, तो फिर ये जवान गलत थे! दोनों ही सही नहीं हो सकते। सेना के भारतीय जवानों की इस दुविधा ने आत्मग्लानि का रुप लिया, फिर अपराधबोध का और फिर यह सब कुछ बगावत के लावे के रुप में फूटकर बाहर आने लगा। फरवरी 1946 में, जबकि लालकिले में मुकदमा चल ही रहा था, रॉयल इण्डियन नेवी की एक हड़ताल बगावत में रुपान्तरित हो जाती है।* कराची से मुम्बई तक और विशाखापत्तनम से कोलकाता तक जलजहाजों को आग के हवाले कर दिया जाता है। देश भर में भारतीय जवान ब्रिटिश अधिकारियों के आदेशों को मानने से इनकार कर देते हैं। मद्रास और पुणे में तो खुली बगावत होती है। इसके बाद जबलपुर में बगावत होती है, जिसे दो हफ्तों में दबाया जा सका। 45 का कोर्ट-मार्शल करना पड़ता है। यानि लालकिले में चल रहा आजाद हिन्द सैनिकों का कोर्ट-मार्शल देश के सभी नागरिकों को तो उद्वेलित करता ही है, सेना के भारतीय जवानों की प्रसिद्ध “राजभक्ति” की नींव को भी हिला कर रख देता है। जबकि भारत में ब्रिटिश राज की रीढ़ सेना की यह “राजभक्ति” ही है!

बिल्कुल इसी चीज की कल्पना नेताजी ने की थी. जब (मार्च’44 में) वे आजाद हिन्द सेना लेकर इम्फाल-कोहिमा सीमा पर पहुँचे थे। उनका आव्हान था- जैसे ही भारत की मुक्ति सेना भारत की सीमा पर पहुँचे, देश के अन्दर भारतीय नागरिक आन्दोलित हो जायें और ब्रिटिश सेना के भारतीय जवान बगावत कर दें। इतना तो नेताजी भी जानते होंगे कि- 1. सिर्फ तीस-चालीस हजार सैनिकों की एक सेना के बल पर दिल्ली तक नहीं पहुँचा जा सकता, और 2. जापानी सेना की ‘पहली’ मंशा है- अमेरिका द्वारा बनवायी जा रही (आसाम तथा बर्मा के जंगलों से होते हुए चीन तक जानेवाली) ‘लीडो रोड’ को नष्ट करना; भारत की आजादी उसकी ‘दूसरी’ मंशा है। ऐसे में, नेताजी को अगर भरोसा था, तो भारत के अन्दर ‘नागरिकों के आन्दोलन’ एवं ‘सैनिकों की बगावत’ पर। ...मगर दुर्भाग्य, कि उस वक्त देश में न आन्दोलन हुआ और न ही बगावत। इसके भी कारण हैं। पहला कारण, सरकार ने प्रेस पर पाबन्दी लगा दी थी और यह प्रचार (प्रोपागण्डा) फैलाया था कि जापानियों ने भारत पर आक्रमण किया है। सो, सेना के ज्यादातर भारतीय जवानों की यही धारणा थी। दूसरा कारण, फॉरवर्ड ब्लॉक के कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था, अतः आम जनता के बीच इस बात का प्रचार नहीं हो सका कि इम्फाल-कोहिमा सीमा पर जापानी सैनिक नेताजी के नेतृत्व में युद्ध कर रहे हैं। तीसरा कारण, भारतीय जवानों का मनोबल बनाये रखने के लिए ब्रिटिश सरकार ने नामी-गिरामी भारतीयों को सेना में कमीशन देना शुरु कर दिया था। इस क्रम में महान हिन्दी लेखक सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्सयायन 'अज्ञेय' भी 1943 से 46 तक सेना में रहे और वे ब्रिटिश सेना की ओर से भारतीय जवानों का मनोबल बढ़ाने सीमा पर पहुँचे थे। (ऐसे और भी भारतीय रहे होंगे।) चौथा कारण, भारत का प्रभावशाली राजनीतिक दल काँग्रेस पार्टी गाँधीजी की ‘अहिंसा’ के रास्ते आजादी पाने का हिमायती था, उसने नेताजी के समर्थन में जनता को लेकर कोई आन्दोलन शुरु नहीं किया। (ब्रिटिश सेना में बगावत की तो खैर काँग्रेस पार्टी कल्पना ही नहीं
कर सकती थी!- ऐसी कल्पना नेताजी-जैसे तेजस्वी नायक के बस की बात है। ...जबकि दुनिया जानती थी कि इन “भारतीय जवानों” की “राजभक्ति” के बल पर ही अँग्रेज न केवल भारत पर, बल्कि आधी दुनिया पर राज कर रहे हैं।) पाँचवे कारण के रुप में प्रसंगवश यह भी जान लिया जाय कि भारत के दूसरे प्रभावशाली राजनीतिक दल भारत की कम्यूनिस्ट पार्टी ने ब्रिटिश सरकार का साथ देते हुए आजाद हिन्द फौज को जापान की 'कठपुतली सेना' (पपेट आर्मी) घोषित कर रखा था। नेताजी के लिए भी अशोभनीय शब्द तथा कार्टून का इस्तेमाल उन्होंने किया था। *** खैर, जो आन्दोलन एवं बगावत 1944 में नहीं हुआ, वह डेढ़-दो साल बाद होता है और लन्दन में राजमुकुट यह महसूस करता है कि भारतीय सैनिकों की जिस “राजभक्ति” के बल पर वे आधी दुनिया पर राज कर रहे हैं, उस “राजभक्ति” का क्षरण शुरू हो गया है... और अब भारत से अँग्रेजों के निकल आने में ही भलाई है। वर्ना जिस प्रकार शाही भारतीय नौसेना के सैनिकों ने बन्दरगाहों पर खड़े जहाजों में आग लगाई है, उससे तो अँग्रेजों का भारत से सकुशल निकल पाना ही एक दिन असम्भव हो जायेगा... और भारत में रह रहे सारे अँग्रेज एक दिन मौत के घाट उतार दिये जायेंगे। लन्दन में ‘सत्ता-हस्तांतरण’ की योजना बनती है। भारत को तीन भौगोलिक तथा दो धार्मिक हिस्सों में बाँटकर इसे सदा के लिए शारीरिक-मानसिक रूप से अपाहिज बनाने की कुटिल चाल चली जाती है। और भी बहुत-सी शर्तें अँग्रेज जाते-जाते भारतीयों पर लादना चाहते हैं। (ऐसी ही एक शर्त के अनुसार रेलवे का एक कर्मचारी आज तक वेतन ले रहा है, जबकि उसका पोता पेन्शन पाता है!) इनके लिए जरूरी है कि सामने वाले पक्ष को भावनात्मक रूप से कमजोर बनाया जाय। लेडी एडविना माउण्टबेटन के चरित्र को देखते हुए बर्मा के गवर्नर लॉर्ड माउण्टबेटन को भारत का अन्तिम वायसराय बनाने का निर्णय लिया जाता है- लॉर्ड वावेल के स्थान पर। एटली की यह चाल काम कर जाती है। विधुर नेहरूजी को लेडी एडविना अपने प्रेमपाश में बाँधने में सफल रहती हैं और लॉर्ड माउण्टबेटन के लिए उनसे शर्तें मनवाना आसान हो जाता है! (लेखकद्वय लैरी कॉलिन्स और डोमेनिक लेपियरे द्वारा भारत की आजादी पर रचित प्रसिद्ध पुस्तक “फ्रीडम एट मिडनाईट” में एटली की इस चाल को रेखांकित किया गया है।) *** बचपन से ही हमारे दिमाग में यह धारणा बैठा दी गयी है कि ‘गाँधीजी की अहिंसात्मक नीतियों से’ हमें आजादी मिली है। इस धारणा को पोंछकर दूसरी धारणा दिमाग में बैठाना कि ‘नेताजी और आजाद हिन्द फौज की सैन्य गतिविधियों के कारण’ हमें आजादी मिली- जरा मुश्किल काम है। अतः नीचे खुद अँग्रेजों के ही नजरिये पर आधारित कुछ उदाहरण प्रस्तुत किये जा रहे हैं, जिन्हें याद रखने पर शायद नयी धारणा को दिमाग में बैठाने में मदद मिले- *** सबसे पहले, माईकल एडवर्ड के शब्दों में ब्रिटिश राज के अन्तिम दिनों का आकलन: “भारत सरकार ने आजाद हिन्द सैनिकों पर मुकदमा चलाकर भारतीय सेना के मनोबल को मजबूत बनाने की आशा की थी। इसने उल्टे अशांति पैदा कर दी- जवानों के मन में कुछ-कुछ शर्मिन्दगी पैदा होने लगी कि उन्होंने ब्रिटिश का साथ दिया। अगर बोस और उनके आदमी सही थे- जैसाकि सारे देश ने माना कि वे सही थे भी- तो भारतीय सेना के भारतीय जरूर गलत थे। भारत सरकार को धीरे-धीरे यह दीखने लगा कि ब्रिटिश राज की रीढ़- भारतीय सेना- अब भरोसे के लायक नहीं रही। सुभाष बोस का भूत, हैमलेट के पिता की तरह, लालकिले (जहाँ आजाद हिन्द सैनिकों पर मुकदमा चला) के कंगूरों पर चलने-फिरने लगा, और उनकी अचानक विराट बन गयी छवि ने उन बैठकों को बुरी तरह भयाक्रान्त कर दिया, जिनसे आजादी का रास्ता प्रशस्त होना था।” *** अब देखें कि ब्रिटिश संसद में जब विपक्षी सदस्य प्रश्न पूछते हैं कि ब्रिटेन भारत को क्यों छोड़ रहा है, तब प्रधानमंत्री एटली क्या जवाब देते हैं। प्रधानमंत्री एटली का जवाब दो विन्दुओं में आता है कि आखिर क्यों ब्रिटेन भारत को छोड़ रहा है- 1. भारतीय मर्सिनरी (पैसों के बदले काम करने वाली- पेशेवर) सेना ब्रिटिश राजमुकुट के प्रति वफादार नहीं रही, और 2. इंग्लैण्ड इस स्थिति में नहीं है कि वह अपनी (खुद की) सेना को इतने बड़े पैमाने पर संगठित एवं सुसज्जित कर सके कि वह भारत पर नियंत्रण रख सके। *** यही लॉर्ड एटली 1956 में जब भारत यात्रा पर आते हैं, तब वे पश्चिम बंगाल के राज्यपाल निवास में दो दिनों के लिए ठहरते हैं। कोलकाता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश चीफ जस्टिस पी.बी. चक्रवर्ती कार्यवाहक राज्यपाल हैं। वे लिखते हैं: “... उनसे मेरी उन वास्तविक विन्दुओं पर लम्बी बातचीत होती है, जिनके चलते अँग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा। मेरा उनसे सीधा प्रश्न था कि गाँधीजी का "भारत छोड़ो” आन्दोलन कुछ समय पहले ही दबा दिया गया था और 1947 में ऐसी कोई मजबूर करने वाली स्थिति पैदा नहीं हुई थी, जो अँग्रेजों को जल्दीबाजी में भारत छोड़ने को विवश करे, फिर उन्हें क्यों (भारत) छोड़ना पड़ा? उत्तर में एटली कई कारण गिनाते हैं, जिनमें प्रमुख है नेताजी की सैन्य गतिविधियों के परिणामस्वरुप भारतीय थलसेना एवं जलसेना के सैनिकों में आया ब्रिटिश राजमुकुट के प्रति राजभक्ति में क्षरण। वार्तालाप के अन्त में मैंने एटली से पूछा कि अँग्रेजों के भारत छोड़ने के निर्णय के पीछे गाँधीजी का कहाँ तक प्रभाव रहा? यह प्रश्न सुनकर एटली के होंठ हिकारत भरी मुस्कान से संकुचित हो गये जब वे धीरे से इन शब्दों को चबाते हुए बोले, “न्यू-न-त-म!” ” (श्री चक्रवर्ती ने इस बातचीत का जिक्र उस पत्र में किया है, जो उन्होंने आर.सी. मजूमदार की पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑव बेंगाल’ के प्रकाशक को लिखा था।) *** निष्कर्ष के रुप में यह कहा जा सकता है कि:-
1. अँग्रेजों के भारत छोड़ने के हालाँकि कई कारण थे, मगर प्रमुख कारण यह था कि भारतीय थलसेना एवं जलसेना के सैनिकों के मन में ब्रिटिश राजमुकुट के प्रति राजभक्ति में कमी आ गयी थी और- बिना राजभक्त भारतीय सैनिकों के- सिर्फ अँग्रेज सैनिकों के बल पर सारे भारत को नियंत्रित करना ब्रिटेन के लिए सम्भव नहीं था।
2. सैनिकों के मन में राजभक्ति में जो कमी आयी थी, उसके कारण थे- नेताजी का सैन्य अभियान, लालकिले में चला आजाद हिन्द सैनिकों पर मुकदमा और इन सैनिकों के प्रति भारतीय जनता की सहानुभूति।
3. अँग्रेजों के भारत छोड़कर जाने के पीछे गाँधीजी या काँग्रेस की अहिंसात्मक नीतियों का योगदान नहीं के बराबर रहा। सो, अगली बार आप भी ‘दे दी हमें आजादी ...’ वाला गीत गाने से पहले जरा पुनर्विचार कर लीजियेगा। —

Monday, July 2, 2012

सत्य -राम सेतु अप्रत्यक्ष प्रत्यक्ष

Some Facts About Ram Setu And Setu Samundram Project
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Ram Setu is a chain of limestone shoals, between the islands of Mannar, near north western Sri Lanka, and Rameswaram, off the south eastern coast of India.

The bridge is 30 miles (48 km) long and separates the Gulf of Mannar (southwest) from the Palk Strait (northeast). Some of the sand banks are dry and the sea in the area is very shallow, being only 3 ft to 30 ft (1 m to 10 m) deep in places, which hinders navigation.The name, Rama's Bridge or Rama Setu (Sanskrit: setu : bridge) for the shoal of islands derives from the Sanskrit epic Ramayana, in which a bridge from Rameswaram was built by allies of Rama that he used to reach Lanka, and rescue his abducted wife Sita from the asura king, Ravana. The sea separating India and Sri Lanka is called Sethu samudram, based on the same episode.

Setu Samudram Project:
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Setu Samudram shipping canal project (SSCP) is a project that has been approved by the Government of India and its work has been started near Kodand Ram Temple. In this project, Palk Gulf and Gulf Mennar will be linked by making a shipping canal through Rameshwaram Island. This will allow ships and boats to navigate in the passage between India and Sri Lanka without having to circle Sri Lanka (as is being done currently). This may save about 400 nautical miles voyage on the West Coast. This project will connect the National Sea Route. This canal will shorten the length of the sea route for ships. Rs. 21 crore per year for fuel expenditure of ships will be saved.

Danger to Ram Setu:
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According to Hindu scriptures and belief, Lord Ram and his vaanar sena had built a bridge from Rameshwaram to Sri Lanka about 17 lacs 25 thousands years ago. The discovery of Shri Ram Setu by NASA confirms that Hindu scriptures and belief are correct in this matter and that Ramayana is history and not mythology as is often construed.

Setu Samudram [shipping canal project] is based on the notion that it is inevitable to break the Shri Ram Setu for easy navigation. This will amount to damaging a monument of both, historical and religious importance to Hindus.

Why Ram Setu should not be damaged
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Ram Setu prevented the tsunami from advancing from Rameshwaram to Kerala.

Spiritual Significanc:
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This is a divine bridge.
Lord Rama and his vaanar sena had built it 17 lacs 25 thousands years ago.
In Puranas, the importance of Setu is explained in great details, especially in Skanda Purana, Vishnu Purana, Agni Purana, and Brahma Purana

Physical Significance
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Ram Setu a natural barrier to Tsunami: During the last tsunami, the Ramar Bridge (at a high elevation) from the rest of the shoal accumulations acted as a natural barrier preventing the direct devastation of the entire Bharatam coastline south and southwest of Nagapattanam. Many geologists, earth scientists, and oceanographers have commented critically, against the disastrous consequences of constructing SSCP. Amongst these is the impending devastation of Kerala, which will suck in after implementation of SSCP, after next Tsunami hits it.

Many Naval officials are saying that even after the completion of SSCP, the depth of the canal shall be only 12 meters (about 36 feet ), and only small and medium sized vessels shall be able to pass. Large sized vessels and carriers shall not be able to pass.

Social Significance:
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The construction of SSCP is trampling upon the feelings and emotions of millions and millions of Hindus.
Besides, this bridge is world's oldest man-made structure. It is much much older than the pyramids of Egypt, and the Great Wall of China. Ram Setu has sentimental, religious and historic value. People have crossed the sea using the Rama- Setu , for many thousand years, until the 15th century.

SAVE RAM SETU............JAI SHRI RAM