Friday, November 19, 2021

डार्विन का विकासवाद का सिद्धांत और आदियोगी का सिद्धांत

आज डार्विन का विकासवाद का सिद्धांत हमें यह बताता है कि किस प्रकार मानव जाति का विकास हुआ उन्हें किन किन श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है। डार्विन ने अपने विभिन्न शोधों के उपरांत लगभग 200 वर्ष पूर्व इस अवधारणा को मानव जाति के समक्ष रखा।
अगर हम मानव विकास को गुणात्मक रूप में देखते हैं तो आदि योगी ने लगभग डार्विन से 15000 वर्ष पूर्व कहा था कि जीवन का प्रारंभ एक मछली से हुआ, जीवन का आरंभ इस पृथ्वी पर जल में हुआ। जिसे हम मत्स्य अवतार के तौर पर जानते हैं। इसके पश्चात विकास की अगली कड़ी में एक ऐसा जंतु आया जो कि उभयचर की श्रेणी में रखा गया जल तथा पृथ्वी दोनों प्रवास करने में सक्षम जिसे कूर्म कहा गया। अन्य अनेकों जीवजंतुओं के उपरांत विकास की कड़ी में सबसे सार्थक जीव स्तनधारी जीव हुआ हुआ एक जंगली सूअर जो की पूरी तरह पृथ्वी पर वास करने वाले शारीरिक रूप से ताकतवर और अपनी भौतिकता में गहराई से निहित था। विकास की कड़ी में अगला जंतु हुआ आधा नर और आधा पशु जिसे हम नरसिंह के नाम से जानते हैं, अगला सार्थक जंतु मानव विकास की कड़ी में हमने समझा वामन को जो कि एक बौना था। वामन के उपरांत विकास की कड़ी में अगला सबसे सार्थक जीव था एक मानव मन मस्तिष्क से सुदृढ़ तन से बलिष्ठ परंतु भावनात्मक रूप से कमजोर बड़े उग्र स्वभाव का जिसे हम परशुराम के रूप में जानते हैं। मानव विकास की कड़ी में मानव का अगला सबसे सार्थक रूप हमारे सामने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का है, जो कि सरल, शांत, भौतिक और भावनात्मक रूप से संतुलित मानव के रूप में विकसित हुआ जिसे प्रत्येक घर में आज भी पूजनीय समझा जाता है। राम के बाद आई श्री कृष्ण इस पृथ्वी पर सबके प्यारे, नटखट, आकर्षक और मनमोहक पुरुष। आधुनिक मानव सभ्यता और विकासवादी स्मृति के रूप में हमारे समक्ष है ध्यान मुद्रा में रहने वाले ध्यानमय पुरुष जिन्हें स्वयं बुद्ध कहा जाता है। बुद्ध ध्यान में इसलिए है क्योंकि यह मानव विकास में मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक विकास में सर्वोत्तम रूप है, इसके बाद भौतिक रूप से और विकास संभव ही नहीं है इसलिए ही बुद्ध ध्यानमय हैं। मत्स्य, कुर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण और बुद्ध मानव के भौतिक विकास की बात जो 200 वर्ष पूर्व डार्विन द्वारा बताई गई, भारतीय लोग मानव विकास की इस शृंखला को कई सहस्र वर्षों से विष्णु के नौ अवतारों के रूप में जानते समझते और बताते आए हैं।
आदियोगी कहते हैं कि मानव शरीर से उत्पन्न होने वाली लगभग 20% ऊर्जा ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा मानव मस्तिष्क उपयोग करता है। इस भौतिक मानव शरीर में इससे ज्यादा क्षमता नहीं है ऊर्जा उत्पन्न करने की इसलिए इस सृष्टि में उपस्थित अन्य आयामों को जानने समझने और एकमात्र साधन ध्यान है। जो भी सीमाएं प्रकृति ने हमारे लिए तय की है अगर उन से परे हम जाना चाहते हैं, यदि हम सत्य में प्रयास करने के इच्छुक हैं तो उन सभी आयामों से ऊंचा उठन के तरीकों प्रक्रियाओं को आदियोगी ने हमारे बीच रखा है।