Wednesday, June 5, 2013

हम भारतीय, सिकंदर?? को सिकंदर महान क्यों माने

हम भारतीय, सिकंदर ?? को सिकंदर महान क्यों माने

सिकंदर अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् अपने सौतेले व चचेरे भाइयों को कत्ल करने के बाद मेसेडोनिया के सिंहासन पर बैठा था। अपनी महत्वकन्क्षा के कारण वह विश्व विजय को निकला। अपने आसपास के विद्रोहियों का दमन करके उसने इरान पर आक्रमण किया,इरान को जीतने के बाद गोर्दियास को जीता । गोर्दियास को जीतने के बाद टायर को नष्ट कर डाला। बेबीलोन को जीतकर पूरे राज्य में आग लगवा दी। बाद में अफगानिस्तान के क्षेत्र को रोंद्ता हुआ सिन्धु नदी तक चढ़ आया।

सिकंदर को अपनी जीतों से घमंड होने लगा था । वह अपने को इश्वर का अवतार मानने लगा,तथा अपने को पूजा का अधिकारी समझने लगा। परंतु भारत में उसका वो मान मर्दन हुआ जो कि उसकी मौत का कारण बना।

सिन्धु को पार करने के बाद भारतt के तीन छोटे छोटे राज्य थे। १--,ताक्स्शिला जहाँ का राजा अम्भी था। २--पोरस। ३--अम्भिसार ,जो की काश्मीर के चारो और फैला हुआ था। अम्भी का पुरु से पुराना बैर था,इसलिए उसने सिकंदर से हाथ मिला लिया। अम्भिसार ने भी तठस्त रहकर सिकंदर की राह छोड़ दी, परंतु भारतमाता के वीर पुत्र पुरु ने सिकंदर से दो-दो हाथ करने का निर्णय कर लिया। आगे के युद्ध का वर्णन में यूरोपीय इतिहासकारों के वर्णन को ध्यान में रखकर करूंगा। सिकंदर ने आम्भी की साहयता से सिन्धु पर एक स्थायी पुल का निर्माण कर लिया।
प्लुतार्च के अनुसार,"२०,००० पैदल व १५००० घुड़सवार सिकंदर की सेना पुरु की सेना से बहुत अधिक थी,तथा सिकंदर की साहयता आम्भी की सेना ने भी की थी। "

कर्तियास लिखता है की, "सिकंदर झेलम के दूसरी और पड़ाव डाले हुए था। सिकंदर की सेना का एक भाग झेहलम नदी के एक द्वीप में पहुच गया। पुरु के सैनिक भी उस द्वीप में तैरकर पहुच गए। उन्होंने यूनानी सैनिको के अग्रिम दल पर हमला बोल दिया। अनेक यूनानी सैनिको को मार डाला गया। बचे कुचे सैनिक नदी में कूद गए और उसी में डूब गए। "
बाकि बची अपनी सेना के साथ सिकंदर रात में नावों के द्वारा हरनपुर से ६० किलोमीटर ऊपर की और पहुच गया। और वहीं से नदी को पार किया। वहीं पर भयंकर युद्ध हुआ। उस युद्ध में पुरु का बड़ा पुत्र वीरगति को प्राप्त हुआ।

एरियन लिखता है कि,"भारतीय युवराज ने अकेले ही सिकंदर के घेरे में घुसकर सिकंदर को घायल कर दिया और उसके घोडे 'बुसे फेलास 'को मार डाला।"
ये भी कहा जाता है की पुरु के हाथी दल-दल में फंस गए थे,तो कर्तियास लिखता है कि,"इन पशुओं ने घोर आतंक पैदा कर दिया था। उनकी भीषण चीत्कार से सिकंदर के घोडे न केवल डर रहे थे बल्कि बिगड़कर भाग भी रहे थे। ----------------अनेको विजयों के ये शिरोमणि अब ऐसे स्थानों की खोज में लग गए जहाँ इनको शरण मिल सके। सिकंदर ने छोटे शास्त्रों से सुसज्जित सेना को हाथियों से निपटने की आज्ञा दी। इस आक्रमण से चिड़कर हाथियों ने सिकंदर की सेना को अपने पावों में कुचलना शुरू कर दिया।"
वह आगे लिखता है कि,"सर्वाधिक ह्रदयविदारक द्रश्य यह था कि, यह मजबूत कद वाला पशु यूनानी सैनिको को अपनी सूंड सेपकड़ लेता व अपने महावत को सोंप देता और वो उसका सर धड से तुंरत अलग कर देता। --------------इसी प्रकार सारा दिन समाप्त हो जाता,और युद्ध चलता ही रहता। "
इसी प्रकार दियोदोरस लिखता है की,"हाथियों में अपार बल था,और वे अत्यन्त लाभकारी सिद्ध हुए। अपने पैरों के तले उन्होंने बहुत सारे यूनानी सैनिको को चूर-चूर कर दिया।
कहा जाता है की पुरु ने अनाव्यशक रक्तपात रोकने के लिए सिकंदर को अकेले ही निपटने का प्रस्ताव रक्खा था। परन्तु सिकंदर ने भयातुर उस वीर प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था।
इथोपियाई महाकाव्यों का संपादन करने वाले श्री इ० ए० दब्ल्यु०बैज लिखते है की,"जेहलम के युद्ध में सिकंदर की अश्व सेना का अधिकांश भाग मारा गया। सिकंदर ने अनुभव किया कि यदि में लडाई को आगे जारी रखूँगा,तो पूर्ण रूप से अपना नाश कर लूँगा।अतः उसने युद्ध बंद करने की पुरु से प्रार्थना की। भारतीय परम्परा के अनुसार पुरु ने शत्रु का वद्ध नही किया। इसके पश्चात संधि पर हस्ताक्षर हुए,और सिकंदर ने पुरु को अन्य प्रदेश जीतने में सहायता की"।
बिल्कुल साफ़ है की प्राचीन भारत की रक्षात्मक दिवार से टकराने के बाद सिकंदर का घमंड चूर हो चुका था। उसके सैनिक भी डरकर विद्रोह कर चुके थे । तब सिकंदर ने पुरु से वापस जाने की आज्ञा मांगी। पुरु ने सिकंदर को उस मार्ग से जाने को मना कर दिया जिससे वह आया था। और अपने प्रदेश से दक्खिन की और से जाने का मार्ग दिया।
जिन मार्गो से सिकंदर वापस जा रहा था,उसके सैनिको ने भूख के कारण राहगीरों को लूटना शुरू कर दिया।इसी लूट को भारतीय इतिहास में सिकंदर की दक्खिन की और की विजय लिख दिया। परंतु इसी वापसी में मालवी नामक एक छोटे से भारतीय गणराज्य ने सिकंदर की लूटपाट का विरोध किया।इस लडाई में सिकंदर बुरी तरह घायल हो गया।
प्लुतार्च लिखता है कि,"भारत में सबसे अधिक खुन्कार लड़ाकू जाती मलावी लोगो के द्वारा सिकंदर के टुकड़े टुकड़े होने ही वाले थे,---------------उनकी तलवारे व भाले सिकंदर के कवचों को भेद गए थे।और सिकंदर को बुरी तरह से आहात कर दिया।शत्रु का एक तीर उसका बख्तर पार करके उसकी पसलियों में घुस गया।सिकंदर घुटनों के बल गिर गया। शत्रु उसका शीश उतारने ही वाले थे की प्युसेस्तास व लिम्नेयास आगे आए। किंतु उनमे से एक तो मार दिया गया तथा दूसरा बुरी तरह घायल हो गया।"
इसी भरी markat में सिकंदर की गर्दन पर एक लोहे की lathi का प्रहार हुआ और सिकंदर अचेत हो गया। उसके अन्ग्रक्षक उसी अवस्था में सिकंदर को निकाल ले गए। भारत में सिकंदर का संघर्ष सिकंदर की मोत का कारण बन गया।
अपने देश वापस जाते हुए वह बेबीलोन में रुका। भारत विजय करने में उसका घमंड चूर चूर हो गया। इसी कारण वह अत्यधिक मद्यपान करने लगा,और ज्वर से पीड़ित हो गया। तथा कुछ दिन बाद उसी ज्वर ने उसकी जान ले ली।
स्पष्ट रूप से पता चलता है कि सिकंदर भारत के एक भी राज्य को नही जीत पाया । परंतू पुरु से इतनी मार खाने के बाद भी इतिहास में जोड़ दिया गया कि सिकंदर ने पुरु पर जीत हासिल की।भारत में भी महान राजा पुरु की जीत को पुरु की हार ही बताया जाता है।यूनान सिकंदर को महान कह सकता है लेकिन भारतीय इतिहास में सिकंदर को नही बल्कि उस पुरु को महान लिखना चाहिए जिन्होंने एक विदेशी आक्रान्ता का मानमर्दन किया।

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