Saturday, July 21, 2012

"अंग्रेजों ने टीका लगाना भारत से सीखा"


आपको आज एक तथ्य बताता हूं धर्य और ध्यान से पढ़ें १७१० के समय में एक अंग्रेज़ भारत आया था। उसका नाम था डा० ओलीवर ये भारत में आके कलकत्ता शहर में आया बंगाल घूमा और सब घूम घाम के इसने एक डायरी लिखी। उस डायरी के एक पन्ने का एक छंद सुनाता हूं आपको...
वो ये कह्ता है, कि मैने भारत में आकर पहली बार देखा की चेचक जैसी महामारी को कितनी आसानी के साथ भारत वासी ठीक कर लेते हैं। आपको मालूम है १७वी सतावदी में पूरे विश्व में एक महामारी फ़ैली थी, पूरे विश्व भर में इलाज़ नही था। अफ़रीका में लेटिन अमेरीका में लाखों लोग मर गये थे इसके कारण ये महामारी थी बिमारी नही थी।
अब उस डा० ने क्या देखा की भारतवासी इस बीमारी से लड़्ने के लिये टीका लगाते थे और वो कहता है की मैने दूनिया में पहली बार देखा डा० होते हुए। डा० ओलीवर एक बहुत बड़ा नाम है इंगलैण्ड में देखो गूगल करके।
तो वो अपनी डायरी में लिखता है कि उस समय भारतवर्श मे चेचक की बिमारी सबसे कम है क्योंकी टीका लगता था। अब टीका लगाने का तरीका क्या है। टीका जो लगता था एक सुई जैसी वस्तू से लगता था जिसके बाद थोड़ा सा ज्वर होता था और तीन दिन में आदमी के शरीर में चेचक से लड़ने की प्रतीरोधक शक्ती मिल जाती थी। ए बार टीका जिसने ले लिया जिंदगी भर के लिये वो चेचक से मुक्त हो गया।

तो अब मेरी लिखी बात पे आप गर्व करना की.......
"अंग्रेजों ने टीका लगाना भारत से सीखा"

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