Saturday, July 21, 2012

इस्पात(स्टील) बनाना भारत ने सिखाया


इस्पात(स्टील) बनाना भारत ने सिखाया और आप जानते है कि ये एक बड़ी तकनीकी का काम है। एक अयस्क लोहे से मनचाहा स्टील या इस्पात बनाना भारत ने दुनिया को सिखाया और ये तकनीकी इस देश में आज की नही है बहुत साल पहले की विकसित की गयी है।
एक अंग्रेज़ आया हमारे भारत में १७९५ में उसने एक सर्वेक्स्ण किया। उस अंग्रेज के कुछ वाक्या सुनाता हूं। अंग्रेजी में उसने लिखा में आपको हिंदी में बताता हूं,
उसने लिखा की भारत में इस्पात बनाने का काम पिछले १५०० साल से हो रहा है। तो एक हिसाब लगाओ कि १८०० ई० में १५०० साल घटा दो तो लगभग तीसरी सदी से इस देश में इस्पात बनाने का काम हो रहा है।
मैने जो सर्वेक्स्ण किया है वो भारत के पस्चिमी, पूर्वी और थोड़ा सा ड्क्शिण इलाके का किया तो मैने इनमे १५००० छोटे कारखाने देखें हैं। मतलब small enterpreneurship का बेतोड़ नमूना था। आगे सुनो वो कहता है कि एक दिन में अगर एक कारखाने का उत्पादन करीबन ५०० किलो तक है और हरएक कारखाना २४ घंटे चलता है। उसमें मज्दूरों की तीन तीन पालियां हैं। जो सबसे महत्तवपूर्ण उपकर्ण जो है- भट्टी लोहा गलाने के लिये इस्तेमाल की जा रही है जिसे हम आजकल blast furnace कहते हैं, ये तो एक बात अब सुनो कि जो उस ब्लास्ट फ़रनेस बनाने की कीमत है वो १५ रुपय हैं और ये आकणा उसी समय का है।
एक टन स्टील बनाने का खर्चा ८० रुपय है तो एक किलो स्टील बनाने का खर्चा ८० पैसे। आज एक किलो स्टील की कीमत क्या है??? ४०-८० रुपेय तो बात ये है कि जब हम अपने भारतीय तरीके से बनाते थे तो वो ८० पैसे थे और अब जब यूरोपियन तरीके से बनाते हैं तो कीमत ५० रुपेय हो गयी तो करीबन ८२ गुना की बढ़ोत्री??
एक बात और वो कहता है कि भारत का स्टील उस समय निर्यात प्रीमियम दामों पर होता था मतलब सबसे महंगा बिकता था??
अंत में वो लिखता है कि अगर भारत के व्यापारी उस स्टील के बदले में सोना भी मांगे तो खरीदार देदे.... वो इसलिये कह रहा है क्योंकि भारत ही में एसा स्टील बनता है जो जिसमें जंग नही लगता। इसका उदाहर्ण किसी से छुपा नही है भैया नही देखा तो जाके लोह स्तंब देख आयो वो भारतीय स्टील का बेजोड़ उदाहरण हैं खुल्ले में बर्सों से खड़ा है अब तक जंग नही लगा।

ऐसा नही है कि एसा स्टील और कहीं बनता ही नही था स्वेडन मे बनता था। पर यहां ८० रुपय का था और वहां ८०००० रुपय की लागत पे बनता था??
एक बात और है जो उसने कही की भारत की जो भट्टी है वो इतनी हलकी है कि उसे बैलगाड़ी मे रख कर कहीं भी असानी से ले जाया जा सकता है।

तो आज से ऐसा कहना छोड़ो की हमे कुछ नही पता हम तो शुरु से ही कमजोर थे कोई तकनीकी नही थी, कुछ नही था, बंजारे थे अरे हमारे पूर्वज तो गुरू थे पूरे विश्व के??

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