Monday, June 18, 2012

इसीलिए मैं कविता को हथियार बना कर गाता हूँ


रोंटे खडे कर देने वाली ये कवीता है..... मेरे देश के सैनिकों को समर्पित
सभी देश-प्रेमी लोगों से निवेदन है कि इस कविता को ज़रूर पढ़ें.....और अपनी प्रतिक्रिया दें ...
सैनिकों को समर्पित एक आरती....)-----


मैं दिनकर का पाँचजन्य हूँ , गहन मौन में खोया हूँ.....
उन बेटों के याद कथानक लिखते-लिखते रोया हूँ.........
जिस माथे की कुमकुम-बिंदी वापस लौट नहीं पाई.....
झुमके,चुटकी,पायल ले गई, क़ुरबानी की अमराई........
कुछ बहनों की राखी जल गई है,बर्फीली घाटी में......
वेदी के गठबंधन मिल गए हैं, बर्फीली माटी में........
टूटी चूड़ी, धुला माहवार, रूठा कंगन हाथों का........
कोई मोल नहीं हो सकता, बासंती ज़ज्बातों का.....
जो पहले-पहले चुम्बन के बाद लाम पर चला गया....
नई दुल्हन की सेज छोड़ कर, युद्ध-काम पर चला गया....
उसको भी मीठी नींदों की करवट याद रही होगी......
खुशबू में डूबी यादों की सलवट याद रही होगी.....
वह औरत पूरी दुनिया का बोझा सर ले सकती है....
जो अपने पति की अर्थी को भी कन्धा दे सकती है.....
तब आंसू की एक बूँद से सातों सागर हारे हैं........
जब मेंहदी वाले हाथों ने मंगलसूत्र उतारे हैं........
मैं ऐसी हर देवी के चरणों में शीश झुकता हूँ.....
इसीलिए मैं कविता को हथियार बना कर गाता हूँ......
जब बेटे की अर्थी आई होगी सूने आँगन में....
शायद दूध उतर आया हो, बूढी माँ के दामन में...
सेना मर-मर कर पाती है, दिल्ली सब खो देती है.....
और शहीदों के लौहू को, स्याही से धो देती है......
मैं इस कायर राजनीति से बचपन से घबराता हूँ.....
इसीलिए मैं कविता को................................................
(अमर शहीदों और सीमा पर तैनात जवानों को मेरा शत-शत नमन....)
साभर- विपुल विद्रोही

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