Wednesday, June 27, 2012

क्या नेताजी ने ‘भगवान जी’ उर्फ ‘गुमनामी बाबा’ का रूप धारण किया था?



"नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की विमान दुर्घटना में मृत्यु नहीं हुई थी। वे उसके बाद भी जीवित थे। इसके अनेक प्रमाण हैं। परंतु पंडित नेहरू ने प्रयत्नपूर्वक इस तथ्य को सामने नहीं आने दिया। ऐसा भी वातावरण तैयार किया कि नेताजी कभी जनता के बीच न आएं और अपनी उपस्थिति न प्रकट करें। पंडित नेहरू ऐसा इसलिए चाहते थे क्योंकि उन्हें यह डर था कि नेताजी के सामने आते ही देशवासी उनके पीछे चले जाएंगे और नेहरू प्रधानमंत्री नहीं रह पाएंगे।" राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री कुप्.सी.सुदर्शन ने एक बार फिर यह बात बहुत स्पष्ट रूप से कही है। नई दिल्ली में गत 5 दिसम्बर को "भगवन् जी से नेता जी तक" पुस्तक के लोकार्पण समारोह को सम्बोधित करते हुए श्री सुदर्शन ने कहा, "जनमानस की शंका का समाधान होना ही चाहिए। इस संदर्भ में पूर्ववर्ती राजग सरकार के समय कुछ गंभीर प्रयत्न हुए थे उसके समय में बनाई गई मुखर्जी कमेटी इस बात की जांच कर रही थी कि अयोध्या में गुमनामी बाबा के नाम से विख्यात व्यक्तित्व कहीं नेताजी तो नहीं थे। गुमनामी बाबा और नेताजी के व्यक्तित्व की समानता को देखते हुए मेरा भी यह विश्वास है कि वे ही नेताजी थे।"

नेताजी की मृत्यु के संदर्भों की चर्चा करते हुए श्री सुदर्शन ने कहा कि ताईवान की सरकार ने भी उस तिथि पर अपने यहां किसी भी प्रकार की विमान दुर्घटना की बात को सिरे से खारिज किया है। श्री सुदर्शन ने कहा कि मेरी भी यह मान्यता है कि 1945 में नेताजी ताईवान से रूस चले गए थे। पर द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद रूस की मित्र राष्ट्रों से हुई संधि के कारण परिस्थितियां बदल गई थीं इसलिए अंग्रेजों के इशारे पर उन्हें वहीं बंदी बना लिया गया और यहां यह खबर उड़ाने में नेहरू जी ने मदद की कि नेताजी की मृत्यु हो गई। रूस से स्वतंत्र होने के बाद संभवत: पंडित नेहरू द्वारा लादी गई कुछ शर्तों को मानकर वे भारत आए। पर यहां की परिस्थितियां ऐसी बना दी गई थीं कि वे सामने न आ सकें। श्री सुदर्शन ने कहा कि नेताजी की मृत्यु का रहस्य हो अथवा कश्मीर या तिब्बत की समस्या, ये सब पंडित नेहरू की ही देन है।

अयोध्या के गुमनामी बाबा की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी हस्तरेखा का मेल नेताजी से होता था। गुमनामी बाबा की मृत्यु के बाद उनका शव दो दिन तक रखा रहा ताकि कोलकाता से कुछ लोग वहां आ सकें। उसके बाद भी उनकी शव यात्रा को प्रशासन ने दबाव देकर छावनी के बीच से होते हुए एक सुनसान स्थान पर अंतिम संस्कार संपन्न कराया जिसमें मात्र 5-7 लोग ही उपस्थित थे जबकि उनका अंतिम संस्कार सरयू तट पर होना निश्चित था। इस सबको देखकर गुमनामी बाबा की सेवा में लम्बे समय तक रहने वाली सरस्वती देवी रोते हुए बुदबुदायीं कि जिसकी शव यात्रा में लाखों लोग होने चाहिए थे उसकी ऐसी गुमनाम शव यात्रा निकली। उनकी मृत्यु के पश्चात् जब गुमनामी बाबा के नेताजी होने की बात कही जाने लगी तब उनके सामान की जांच पड़ताल की गई और उससे भी इस बात को बल मिलता है कि वे ही नेताजी थे।

लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री डा.मुरली मनोहर जोशी ने भी अनेक तथ्यों, प्रमाणों एवं संदर्भों का हवाला देते हुए इस बात को सिद्ध किया कि विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु नहीं हुई थी। उन्होंने कहा कि 1978 में माउंटबेटन ने भी यह कहा था कि नेताजी की मृत्यु के संबंध में वे आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कह सकते। स्वतंत्रता के बाद नेताजी की कथित मृत्यु के रहस्य पर से पर्दा हटाने के लिए शाहनवाज कमेटी, खोसला कमेटी और मुखर्जी आयोग का गठन हुआ। पर किसी भी समिति ने यह नहीं कहा कि उस विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु हुई थी। डा.जोशी ने कहा कि नेताजी के संबंध में किसी भी जांच और शोध में कांग्रेस की सरकारें सहयोग नहीं करती थीं। डा.जोशी ने कहा कि मैं देशवासियों से यह आधिकारिक रूप से एवं दावे के साथ कह सकता हूं कि 1945 में ताईवान में हुई कथित विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु नहीं हुई थी।

क्या नेताजी ने ‘भगवान जी’ उर्फ ‘गुमनामी बाबा’ का रूप धारण किया था?
रचलित कहानी के अनुसार, 1950 के दशक में ‘दशनामी’ सम्प्रदाय के एक सन्यासी नेपाल के रास्ते भारत में प्रवेश करते हैं। नीमशहर और बस्ती में वे अपना एकाकी जीवन बिताते हैं। उन्हें ‘भगवानजी’ के नाम से जाना जाता है।
बताया जाता है कि नेताजी को पहले से जानने वाले कुछ लोग- जैसे उनके कुछ रिश्तेदार, कुछ शुभचिन्तक, कुछ स्वतंत्रता सेनानी, कुछ आजाद हिन्द फौज के अधिकारी उनसे गुप-चुप रूप से मिलते रहते थे। खासकर, 23 जनवरी और दुर्गापूजा के दिन मिलने-जुलने वालों की तादाद बढ़ जाती थी। पहचान खुलने के भय से और कुछ अर्थाभाव के कारण 1983 में, 86 वर्ष की अवस्था में वे पुरानी जगह बदल देते हैं और फैजाबाद (अयोध्या) आ जाते हैं। (ध्यान रहे, नेताजी का जन्म 23 जनवरी 1897 को हुआ था।)
1975 से ही उनके भक्त बने डॉ. आर.पी. मिश्रा ‘रामभवन’ में उनके लिए दो कमरे किराये पर लेते हैं। यहाँ भगवानजी एकान्त में रहते हैं, पर्दे के पीछे से ही लोगों से बातचीत करते हैं और रात के अन्धेरे में ही उन्हें जानने वाले उनसे मिलने आते हैं। यहाँ तक कि उनके मकान-मालिक गुरुबसन्त सिंह भी दो वर्षों में सामने से उनका चेहरा नहीं देख पाते हैं। उनकी देखभाल के लिए सरस्वती देवी अपने बेटे राजकुमार मिश्रा के साथ रहती हैं। भगवानजी इतने गोपनीय ढंग से रहते हैं कि उन्हें ‘गुमनामी बाबा’ का नाम मिल जाता है, जो गुमनाम ही रहना चाहता हो।
16 सितम्बर 1985 को गुमनामी बाबा का देहान्त होता है। 18 सितम्बर को उनके भक्तजन बाकायदे तिरंगे में लपेटकर उनका पार्थिव शरीर सरयू तट के गुप्तार घाट पर ले जाते हैं और तेरह लोगों की उपस्थिति में उनका अन्तिम संस्कार कर दिया जाता है। इसके बाद खबर जोर पकड़ती है कि है कि गुमनामी बाबा नेताजी थे।
गुमनामी बाबा के सामान को प्रशासन नीलाम करने जा रहा था। लालिता बोस, एम.ए. हलीम और विश्वबन्धु तिवारी कोर्ट गये, तब जाकर अदालत के आदेश पर मार्च’ 86 से सितम्बर’ 87 के बीच उनके सामान को 24 ट्रंकों में सील किया गया। 26 नवम्बर 2001 को इन ट्रंकों के सील मुखर्जी आयोग के सामने खोले जाते हैं और इनमें बन्द 2,600 से भी अधिक चीजों की जाँच की जाती है। पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं के अलावे इन चीजों में नामी-गिरामी लोगों- जैसे, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के “गुरूजी”, पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री तथा राज्यपाल के पत्र, नेताजी से जुड़े समाचारों-लेखों के कतरन, रोलेक्स और ओमेगा की दो कलाई-घड़ियाँ (कहते हैं कि ऐसी ही घड़ियाँ वे पहनते थे), जर्मन दूरबीन, इंगलिश टाईपराइटर, पारिवारिक छायाचित्र, हाथी दाँत का स्मोकिंग पाईप (टूटा हुआ) इत्यादी हैं। यहाँ तक कि नेताजी के बड़े भाई सुरेश बोस को खोसला आयोग द्वारा भेजे गये सम्मन की मूल प्रति भी है।
श्री मनोज कुमार मुखर्जी चूँकि ‘न्यायाधीश’ (अवकाशप्राप्त) हैं, अतः ‘बिना पक्के सबूतों और गवाहों’ के वे अन्तिम निर्णय लेने में असमर्थ हैं। तीन कारणों से वे ‘गुमनामी बाबा’ को ‘नेताजी’ घोषित नहीं करते:
1. बाबा को करीब से जानने वाले लोग स्वर्गवासी हो चुके हैं, अतः वे गवाही के लिए उपलब्ध नहीं हो सकते;
2. बाबा का कोई छायाचित्र उपलब्ध नहीं है, और
3. सरकारी फोरेंसिक लैब ने उनके ‘हस्तलेख’ और ‘दाँतों’ की डी.एन.ए. जाँच का रिपोर्ट ऋणात्मक दिया है।
(ये दाँत एक माचिस की डिबिया में रखे पाये गये थे। अच्छा होता, अगर जस्टिस मुखर्जी ने ये जाँच भारत के बाहर के फोरेंसिक लैबों में भी करवाये होते। भारतीय ‘सरकारी’ लैबों की रिपोर्टों को विश्वसनीय मानना जरा मुश्किल है |)
खैर, नेताजी के ज्यादातर भक्त आज ‘दशनामी सन्यासी’ उर्फ ‘भगवान जी’ उर्फ ‘गुमनामी बाबा’ को ही नेताजी मानते हैं। (अनुज धर के ‘मिशन नेताजी’ ने इसके लिए बाकायदे अभियान चला रखा है।) कारण हैं: उनकी कद-काठी, बोल-चाल इत्यादि नेताजी जैसा होना; कम-से-कम चार मौकों पर उनका यह स्वीकारना कि वे नेताजी हैं; उनके सामान में नेताजी के पारिवारिक तस्वीरों का पाया जाना; नेताजी के करीबी रहे लोगों से उनकी घनिष्ठता और पत्र-व्यवहार; बात-चीत में उनका जर्मनी आदि देशों का जिक्र करना; इत्यादि।
जो बातें गुमनामी बाबा के नेताजी होने के समर्थन में जाती हैं, उन्हीं में से कुछ बातें उनके विरुद्ध भी जाती है, मिसाल के तौर पर: सन्यास लेकर जब नेताजी ने पिछले जीवन से नाता तोड़ लिया, तो फिर पुराने पारिवारिक छायाचित्रों के मोह से वे क्यों बँधे रहे? क्या सिंगापुर छोड़ने के समय से ही वे इन छायाचित्रों को साथ लिये घूम रहे थे?
अगर उनके सामान में उनके ही टाईपराईटर और बायनोकूलर पाये जाते हैं, तो यह ‘दाल में काला’- जैसा मामला है। सिंगापुर छोड़ते समय निस्सन्देह वे अपना टाईपराइटर और बायनोकूलर साथ नहीं ले गये होंगे, न ही (सन्यास धारण करने के बाद) सोवियत संघ से भारत आते समय इन्हें लेकर आये होंगे, फिर ये उनतक कैसे पहुँचे? सिंगापुर में उनके सामान को तो माउण्टबेटन की सेना ने जब्त कर सरकारी खजाने में पहुँचा दिया होगा। (एक कुर्सी शायद लालकिले में है।)

माना कि विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नेताजी पर छपने वाली खबरों की कतरनों को उनके भक्तजनों ने उनतक पहुँचाया होगा, मगर सरकारी खजाने से निकालकर मेड इन इंग्लैण्ड एम्पायर कोरोना टाईपराइटर और मेड इन जर्मनी 16 गुना 56 दूरबीन उनतक पहुँचाना उनके भक्तजनों के बस की बात नहीं है। तो फिर? क्या गुप्तचर विभाग के अधिकारियों ने उनके पास ये सामान पहुँचाये? तो क्या ‘गुमनामी बाबा’ को भारत सरकार के गुप्तचर विभाग ने खड़ा किया था? ताकि वास्तविक नेताजी की ओर लोगों का ध्यान न जाये? या फिर, जनता ‘ये असली हैं’ और ‘वे असली हैं’ को लेकर लड़ती रहे और सरकार चैन की साँस लेती रहे?


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